Natural treatment Archives - Healthy Sansaar https://healthysansaar.in/category/natural-treatment/ SEE THE HEALTH THE WAY OUR ANCESTORS SAW Sat, 14 Sep 2024 05:21:32 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7 https://i0.wp.com/healthysansaar.in/wp-content/uploads/2020/09/cropped-HEALTHY-SANSAAR-LOGO-2.png?fit=32%2C32&ssl=1 Natural treatment Archives - Healthy Sansaar https://healthysansaar.in/category/natural-treatment/ 32 32 180658306 इंटरमिटेंट फास्टिंग /Intermittent fasting https://healthysansaar.in/%e0%a4%87%e0%a4%82%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%9f-%e0%a4%ab%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97-intermittent-fasting/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2587%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%259f%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%259f%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%259f-%25e0%25a4%25ab%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%259f%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%2597-intermittent-fasting https://healthysansaar.in/%e0%a4%87%e0%a4%82%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%9f-%e0%a4%ab%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97-intermittent-fasting/#respond Sat, 14 Sep 2024 05:21:30 +0000 https://healthysansaar.in/?p=3854 इंटरमिटेंट फास्टिंग का अर्थ है रूक – रूक कर उपवास करना। इंटरमिटेंट फास्टिंग में 16 घंटे की उपवास की जाती है और 8 घंटे के अंदर खाना खाया जाता है। फास्टिंग के दौरान पानी , निम्बू पानी ,ग्रीनटी या कोई भी हर्बल चाय लिया जाता है।  इंटरमिटेंट फास्टिंग से होने Read more…

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इंटरमिटेंट फास्टिंग का अर्थ है रूक – रूक कर उपवास करना। इंटरमिटेंट फास्टिंग में 16 घंटे की उपवास की जाती है और 8 घंटे के अंदर खाना खाया जाता है। फास्टिंग के दौरान पानी , निम्बू पानी ,ग्रीनटी या कोई भी हर्बल चाय लिया जाता है। 

इंटरमिटेंट फास्टिंग से होने वाले फायदे 

1 . शुगर लेवल में कमी आती है 

डायबिटीज का मुख्य कारण है इन्सुलिन रेसिस्टेन्स। फास्टिंग के दौरान इन्सुलिन लेवल अपने निम्न स्तर पर रहता है। इससे पैंक्रियास को रेस्ट मिलता है और रिकवरी होती है। इन्सुलिन की संवेदनशीलता बढ़ती है। इन्सुलिन की संवेदनशीलता बढ़ने से कम इन्सुलिन का उपयोग कर ग्लूकोज कोशिकाओं में पहुँच पाता है। जिससे रक्त में ग्लूकोज /शुगर का लेवल ज्यादा नहीं रहता। इन्सुलिन की संवेदनशीलता बढ़ने से इन्सुलिन रेसिस्टेन्स कम होता है। इन्सुलिन रेजिस्टेंस कम होने से डायबिटीज रिवर्स होता है। 

2 . वजन कम होता है 

वजन कम करने के लिए इंटरमिटेंट फास्टिंग सर्वोत्तम उपाय है। 8 घंटे की ईटिंग विंडो में कम कैलोरी ले पाते हैं। फास्टिंग के कारण हार्मोन की कार्यक्षमता बढ़ती है। मेटाबोलिज्म में सुधार होता है। शरीर में जमीं चर्बी का उपयोग शरीर ऊर्जा प्राप्त करने के लिए कर पाता है। 

3 .  हार्ट के लिए बहुत फायदेमंद है 

फास्टिंग से ब्लड शुगर में कमी आती है। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस कम होता है। इन्फ्लामेशन में कमी आती है। ब्लड प्रेशर में सुधर होता  है। ट्राइग्लिसराइड ,टोटल कोलेस्ट्रॉल और LDL कोलेस्ट्रॉल में भी कमी आती है। फलवारूप ह्रदय की कार्यक्षमता बेहतर होती है और हार्ट अटैक की सम्भावना कम जाता है। 

4 . पेट सम्बन्धी रोगों में फायदेमंद 

गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट जो पेट सम्बन्धी बिमारियों का इलाज़ करते हैं ,उन्होंने इस बात का समर्थन किया है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग से आंत सम्बन्धी बीमारियां ठीक होती हैं। एसिडिटी की समस्या भी ठीक होती है। गट माइक्रोबायोम / microbiome  में सुधार होता है। लिकी गट में भी सुधार देखा गया है।  

5 . लिवर स्वास्थ्य के लिए वरदान 

एक महीने की इंटरमिटेंट फास्टिंग से लिवर की समस्या में सुधार दिखने लगता है। डाक्टरी सलाह ,इंटरमिटेंट फास्टिंग और उचित डाइट लिवर को पूर्ण रूप से स्वस्थ कर देता है। इससे SGOT और SGPT के लेवल में बहुत कमी देखी गयी है। इसका प्रमाण / इविडेंस मिला है। 

6 . किडनी के रोगी भी पूर्ण रूप से स्वस्थ होते हैं

किडनी के डॉक्टर Jason Fang ने इंटरमिटेंट फास्टिंग का उपयोग कर अनेक किडनी के रोगियों को नया जीवन दिया है। इंटरमिटेंट फास्टिंग के द्वारा लोग स्टेज 4 किडनी डिजीज से नार्मल किडनी प्राप्त करने में कामयाब हुए हैं। 

7 . कैंसर रोग की सम्भावना में कमी आती है 

कैंसर की सम्भावना में कमी का प्रमाण जानवरों में मिल चूका है। मनुष्यों पर शोध चल रहा है। कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट्स में इंटरमिटेंट फास्टिंग से कमी का प्रमाण मिल चूका है। 

जिन लोगों से संभव नहीं है 16 घंटे की फास्टिंग वह 14 घंटे की फास्टिंग करें। सप्ताह में एक दिन अपनी पसंद का खाना खाएं और सप्ताह में एक दिन केवल 10 से  12 घंटे की ही फास्टिंग करें। लगातार 16 घंटे की फास्टिंग से हॉर्मोन इम्बैलेंस हो सकता है , इसलिए सप्ताह में एक दिन 10 से 12 घंटे की ही फास्टिंग करें। 

18 साल से कम उम्र के बच्चे और गर्भवती महिलाएं तथा जिन्हें ईटिंग डिसऑर्डर है वे इस तरह की फास्टिंग से बचें। 

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डायबिटीज डाइट चार्ट/Diabetes diet chart https://healthysansaar.in/%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%af%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%9c-%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9f-%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f-diabetes-diet-chart/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25a1%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25af%25e0%25a4%25ac%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%259f%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%259c-%25e0%25a4%25a1%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%2587%25e0%25a4%259f-%25e0%25a4%259a%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%259f-diabetes-diet-chart https://healthysansaar.in/%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%af%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%9c-%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9f-%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f-diabetes-diet-chart/#respond Tue, 10 Sep 2024 14:26:43 +0000 https://healthysansaar.in/?p=3838 डायबिटीज डाइट चार्ट अपनाना जरुरी इसलिए है क्योंकि डायबिटीज रिवर्स करना ,मैनेज करना या कण्ट्रोल करना मेडिसिन से संभव नहीं है। इसके लिए आवश्यक है अपनी इच्छा शक्ति  बढ़ाना और अपने ऊपर संयम रखना। डायबिटीज डाइट चार्ट आपकी इसमें सहायता करता है। यह एक प्रकार का सैंपल डाइट प्लान है।  Read more…

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डायबिटीज डाइट चार्ट अपनाना जरुरी इसलिए है क्योंकि डायबिटीज रिवर्स करना ,मैनेज करना या कण्ट्रोल करना मेडिसिन से संभव नहीं है। इसके लिए आवश्यक है अपनी इच्छा शक्ति  बढ़ाना और अपने ऊपर संयम रखना। डायबिटीज डाइट चार्ट आपकी इसमें सहायता करता है। यह एक प्रकार का सैंपल डाइट प्लान है। 

इस अध्याय में जो डायबिटीज डाइट चार्ट दिया जायेगा ,उस डाइट का ग्लाइसेमिक लोड 50 – 60 के करीब है। डायबिटीज कण्ट्रोल करने  के लिए कम ग्लाइसेमिक लोड का डाइट लिया जाता है। डायबिटिज डाइट चार्ट में 8 घंटे की ईटिंग विंडो है और 16 घंटे की फास्टिंग करनी है। जो 16 घंटे की फास्टिंग नहीं कर सकते वह 12 घंटे की फास्टिंग करें और 12 घंटे की ईटिंग विंडो में खाना खाये। जो 16 घंटे की फास्टिंग करेंगे उनको बेहतर परिणाम मिलेगा। जिनका लिवर अस्वस्थ है वह भी यह डाइट लें। जिन्हें एसिडिटी है या पेट से सम्बंधित किसी भी तरह की परेशानी है ,वह यह डाइट प्लान फॉलो करें।  रोटी बनाने के लिए डायबिटिक आटा का प्रयोग करना है। एक टाइम पॉजिटिव मिलेट जरूर लेनी है। 

सुबह 6 से 9 बजे तक 

पानी में निम्बू का रस  और सेंधा नमक डालकर निम्बू पानी लिया जा सकता है। किसी भी एक पत्ते की चाय ले सकते हैं। पत्ते को पानी में उबालकर उस पानी को पिया जा सकता है। ( करि पत्ता 5 -6  , अमरुद का एक पत्ता , जामुन का एक पत्ता ,आम का एक पत्ता या करेले के 2 – 3 पत्ते )

डायबिटीज डाइट चार्ट में सुबह 9 बजे  

रात में  एक चम्मच मेथी दाना पानी में भिगोये। इस पानी को सुबह  पी लें और मेथी दाना चबा कर खाएं। रात में 4 – 5 बादाम पानी में भिगोये , अलग बर्तन में 2 – 3 अखरोट भिगोये , एक बर्तन में काजू 4 और पिस्ता 7 – 8 भिगोये , अलग बर्तन में एक चम्मच कद्दू के बीज भिगोये।  सुबह बादाम छीलकर खाये ,साथ ही सभी ड्राई फ्रूट्स का पानी फेंक दें और ड्राई फ्रूट्स खा लें। यदि चिया बीज भिगोते हैं तो उसका पनि भी पिए और चिया भी खाये। 

डायबिटीज डाइट चार्ट में सुबह 9.30 से 10 बजे के बीच 

खाने से 10 मिनट पहले एक चम्मच एप्पल साइडर विनेगर पानी में मिलाकर पी लें। यदि करेले की सब्जी खा रहे हैं तो एप्पल साइडर विनेगर नहीं लें। यदि दोनों में से कुछ नहीं लिया तब खाने के बाद 3 ग्राम जामुन का पाउडर खाने के बाद लें। 

डायबिटिक आटा की बानी 2 रोटी + एक कटोरी हरी सब्जी + एक कटोरी दाल + एक कटोरी दही। 

रोटी और दाल में घी ऊपर से मिलकर खाये। खाने में हरी सब्जी के साथ पनीर और करेले की सब्जी भी ले सकते हैं। 

2 बजे दोपहर 

एक गिलास चने की सत्तू  या  एक खीरा या एक कटोरी चना और मूंग का स्प्राउट लें।  स्प्राउट स्टीम किया हुआ या हल्का भूना हुआ लें।  कच्चा स्प्राउट पचने में भारी होता है और बैक्टीरियल इन्फेक्शन की सम्भावना इसमें ज्यादा होती है। 

4 बजे शाम 

कोई भी मौसमी /सीजनल फल 200 ग्राम लें। आम ,केला ,चीकू ,तरबूज ,खरबूज 100 ग्राम से कम लें। सेब ,अमरुद ,पपीता ,नाशपाती,जामुन ,बेर यह डायबिटीज में लिया जा सकता है। मिल्क टी/चाय  पीने वाले फल खाने के आधे घंटे बाद टी ले सकते हैं  

5 से 6 बजे के बीच डिनर / रात का खाना 

कोई भी एक पॉजिटिव मिलेट डिनर में लें। इसे दाल सब्जी के साथ खिचड़ी की तरह पकाएं या मिलेट अलग पकाएं तथा दाल ,सब्जी के साथ खाये। हरी सब्जी के साथ ,चना ,राजमा या अंडा भी ले सकते हैं। 

दही ,घी ,पनीर कम मात्रा में ले सकते हैं पर दूध नहीं पीना है। 

पॉजिटिव मिलेट 5 तरह के होते हैं।  फॉक्सटेल मिलेट , कोदो मिलेट ,लिटिल मिलेट ,बारनयार्ड मिलेट ,ब्रॉउन टॉप मिलेट।  इसे पकाने से पहले 6 से 8 घंटे के लिए पानी में भिगो दें। इसी पानी में मिलेट पकाएं। अमेजॉन तथा फ्लिपकार्ट पर मिलेट आसानी से मिल जाते हैं। लोकल मार्किट में भी यह मिल सकता है। हमेशा बदल बदल कर मिलेट खाये। एक दिन में एक मिलेट का यूज करें। डायबिटीज डाइट चार्ट फॉलो करते हैं तो सप्ताह में एक दिन अपने पसंद का कुछ भी खाया जा सकता है।

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डायबिटीज में अलसी बीज कितना फायदेमंद ? Benefits of Flaxseeds in Diabetes . https://healthysansaar.in/%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%af%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%9c-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a4%b8%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a5%80%e0%a4%9c-flaxseed-diabetes/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25a1%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25af%25e0%25a4%25ac%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%259f%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%259c-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%25ac%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%259c-flaxseed-diabetes https://healthysansaar.in/%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%af%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%9c-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a4%b8%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a5%80%e0%a4%9c-flaxseed-diabetes/#comments Wed, 03 Nov 2021 11:41:39 +0000 https://healthysansaar.in/?p=1261 डायबिटीज में अलसी बीज खाना अच्छा बताया जाता है। इस लेख में हम जानेंगे कि डायबिटीज में अलसी बीज खाने से क्या फायदा होता है ? हमे कितना अलसी बीज खाना चाहिए और इसे किस प्रकार खाना चाहिए ? अलसी बीज कम मात्रा में छोटे बच्चों को भी खिलाया जा Read more…

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डायबिटीज में अलसी बीज के फायदे

डायबिटीज में अलसी बीज खाना अच्छा बताया जाता है। इस लेख में हम जानेंगे कि डायबिटीज में अलसी बीज खाने से क्या फायदा होता है ? हमे कितना अलसी बीज खाना चाहिए और इसे किस प्रकार खाना चाहिए ? अलसी बीज कम मात्रा में छोटे बच्चों को भी खिलाया जा सकता है। यह एक औषधीय बीज है और इसका स्वाद भी लोगों को काफी पसंद आता है। जिन्होंने भी अलसी बीज का वह स्वाद चखा है जो लकड़ी के ओखली में भूना हुआ अलसी / तीसी को कूटकर मिलता है ,वे इसके स्वाद के लिए इसे खाते हैं। मैं भी उन्ही में से एक हूँ। बचपन से इसके स्वाद के कारण  इसे खाती थी ,अब ज्ञान हुआ कि अलसी ने मुझे स्वस्थ रखा है और अनेक बिमारियों से बचाया है। इस लेख में हम विशेषकर अलसी के उन फायदों के बारे में जानेंगे जो डायबिटीज में अलसी बीज खाने से प्राप्त होते हैं। 

अलसी बीज क्या होता है ? What is Flaxseed ? 

अलसी की खेती इसके फाइबर / रेशे और इसके बीज के लिए की जाती है। इसका पौधा झाड़ीनुमा  30 इंच तक करीबन होता है। इसमें नीले रंग के फूल आते हैं और छोटे – छोटे लट्टू के सामान फल होते हैं। इन्ही फलों के पकने पर इस एक फल से 6 से 8 बीज प्राप्त होते हैं।  यह सर्दी के मौसम में उगता है। सरसों और तीसी को एक जैसी जलवायु की आवश्यकता होती है। अलसी के रेशों से डोरी ,रस्सी ,टांट और मोटे कपड़े बनाये जाते हैं। अलसी के बीज को भूनकर खाया जाता है। अलसी के तेल को खाने में भी प्रयोग किया जाता और इससे वार्निश ,पेंट ,साबुन ,रंग आदि भी बनाये जाते हैं। भारत में तीसी की खेती बिहार ,छत्तीसगढ़ ,उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश ,झारखण्ड ,उड़ीसा और असम में मुख्य रूप से की जाती है।अलसी को तीसी के नाम से भी जाना जाता है। अलसी को अंग्रेजी में Flaxseed और Linseed कहा जाता है।इसका बोटैनिकल नाम Linum usitatissimum है। यह Linaceae फैमिली का सदस्य है। 

अलसी बीज का औषधीय गुण / Medicinal Properties of Flaxseed 

  • एंटीफंगल ( फंगल संक्रमण को ख़त्म करने वाला ) 
  • एंटीऑक्सीडेंट्स ( फ्री रेडिकल्स कम करने वाला )
  • एंटी डायबिटिक (ब्लड शुगर कम करनेवाला )
  • एंटी कैंसर ( कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकनेवाला ) 
  • एंटीह्यपरटेंसिव ( बढे हुए ब्लड प्रेशर को कम करनेवाला ) 
  • एंटी थ्रोम्बिक ( रक्त के थक्का जमने की प्रक्रिया को धीमा करनेवाला )
  • कोलेस्ट्रॉल लेवल कम करनेवाला 

अलसी में मौजूद पोषक तत्व / Nutritional Value of Flaxseed 

पोषक तत्व मात्रा प्रति 100 ग्राम 
ऊर्जा 534 kcal 
प्रोटीन 18.29 gram 
फैट 42.16 gram 
कार्बोहायड्रेट 22.88 gram
टोटल डाइटरी फाइबर 27.30 gram 
कैल्शियम 255 mg
आयरन 5.73 mg
मैग्नीशियम 392 mg
फॉस्फोरस 642 mg
पोटैशियम 813 mg
जिंक 4.34 mg
सोडियम 30 mg
कॉपर 1.22 mg
मैंगनीज 2.482 mg
सेलेनियम 25.4 mcg
थायमिन 1.644 mg
राइबोफ्लेविन 0. 161 mg
नियासिन 3.08 mg
विटामिन B6 0.473 mg
फोलेट 87 mcg
विटामिन E 0.31 mg
विटामिन K 4.3 mcg

लिपिड

ओमेगा 3 फैटी एसिड   –   22.8 ग्राम 

ओमेगा 6 फैटी एसिड –     5.9 ग्राम 

सैचुरेटेड फैटी एसिड – 3.663  ग्राम 

डायबिटीज में अलसी बीज खाने के फायदे / Benefits of Flaxseed in Hindi 

1. डायबिटीज में अलसी बीज शुगर लेवल कम करे 

अलसी बीज में घुलनशील और अघुलनशील दोनों प्रकार के फाइबर मौजूद होते हैं। इसका ग्लाइसेमिक लोड और ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी कम होता है। घुलनशील फाइबर भोजन पचाने की प्रक्रिया को धीमा कर ब्लड में शुगर को धीरे – धीरे रिलीज़ करने में मदद करता है। अलसी में मौजूद म्यूसिलेज गम और अल्फा लिनोलेनिक एसिड ब्लड शुगर को नियंत्रित करने का काम करते हैं। इस तरह अलसी का सेवन ब्लड में शुगर का लेवल कम कर देता है। 

2. डायबिटीज में कब्ज से राहत दिलाये अलसी बीज 

डायबिटीज में अक्सर रोगी को कब्ज की शिकायत हो जाती है। अलसी में मौजूद म्यूसिलेज गम प्रीबायोटिक होता है ,यह आंत को स्वस्थ रखने में मदद करता है। अलसी खाने के बाद सही मात्रा में पानी पी जाए तो इसमें मौजूद फाइबर फूल कर मल की मात्रा को बढ़ाते हैं और बाउल ट्रांजिट टाइम कम करते हैं। बॉवेल ट्रांजिट टाइम का अर्थ है भोजन को पचाने से लेकर मल के रूप में बाहर निकालने तक का टाइम। 

3. डायबिटीज में अलसी बीज का सेवन रखे कैंसर से दूर 

डायबिटीज में कैंसर होने की सम्भावना 20 % से 50 % तक बढ़ जाती है। यहाँ तक कि नए शोध में पाया गया कि डायबिटीज में सबसे ज्यादा प्रयोग में लाया जानेवाला दवा मेटफोर्मिन में कैंसर को बढ़ाने वाले ड्रग है। जबकि कई शोध में माना जाता था कि मेटफोर्मिन से कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है। अलसी बीज में मौजूद SDG lignan एंटीऑक्सीडेंट और फाइटोएस्ट्रोजन्स दोनों है। इसमें एंटी कैंसर गुण होते हैं। अलसी बीज में SDG Lignan की उपस्थिति अन्य खाद्य पदार्थों से प्राप्त होनेवाले लिगनन से 800 गुणा ज्यादा है। यह कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोक देते हैं। यह ब्रेस्ट कैंसर ,यूट्रस कैंसर ,कोलोन कैंसर ,प्रोस्टेट कैंसर से बचाव करते हैं। अलसी में कई फाइटोकेमिकल्स हैं जैसे फेनोलिक एसिड ,सिनमिक एसिड ,फ्लवोनोइड्स ,लिगनिंस आदि एंटीऑक्सीडेंट्स हैं जो स्वस्थ कोशिकाओं की वृद्धि तथा उनकी लाइफ स्पेन को बढ़ाते हैं। 

4. डायबिटीज में अलसी बीज का सेवन करे उच्च रक्तचाप में कमी 

डायबिटीज में शुगर लेवल के बढ़ने के साथ ही इन्सुलिन का लेवल भी बढ़ने लगता है। बढ़ा हुआ इन्सुलिन धमनी को सख्त करने का कार्य करता है। जिससे रक्तचाप में वृद्धि होने लगती है। अलसी बीज पोटैशियम ,मैग्नीशियम तथा ओमेगा 3 का बढ़िया श्रोत है। ये सभी उच्च रक्तचाप में कमी लाते हैं। पोटैशियम की सही मात्रा धमनी को लचीला बनाती है तथा ओमेगा 3 धमनी में प्लाक नहीं बनने देता और इंफ्लमैशन भी कम करता है।

पढ़ें : ओमेगा 3 के फायदे ,श्रोत और नुकसान 

5. डायबिटीज में अलसी बीज ट्राइग्लिसराइड ,कोलेस्ट्रॉल और इंफ्लामेशन कम करे 

डायबिटिक रोगी में अक्सर ह्रदय सम्बंधित समस्या देखी जाती है। ऐसे में अलसी बीज का सेवन किया जाए तो ट्राइग्लिसराइड ,कोलेस्ट्रॉल और इंफ्लामेशन में कमी आती है। एथेरोस्क्लेरोसिस ( धमनियों में प्लाक बनना ) एक इंफ्लामेटोरी समस्या है। अलसी में मौजूद ओमेगा 3 ( ALA ) इस डिसऑर्डर को होने से रोक देता है। अलसी में मौजूद फाइबर रक्त में कोलेस्ट्रॉल की कमी करता है। इसके सेवन से HDL कोलेस्ट्रॉल में भी बढ़त होती है। इस तरह अलसी बीज ह्रदय  स्वस्थ रखने में सहायक होता है। 

6. डायबिटीज में अलसी बीज का सेवन रखे प्रजनन तंत्र स्वस्थ 

डायबिटिक रोगी में प्रजनन तंत्र सम्बन्धी अस्वस्थता देखी जाती है। ऐसे में अलसी बीज का सेवन फायदेमंद साबित होता है। यह पुरुष और महिलाएं दोनों के प्रजनन तंत्र स्वस्थ रखने में मदद करती है। जो महिलाएं नियमित अलसी बीज खाती हैं और प्रेगनेंसी में भी खाती हैं उनके संतान में प्रजनन तंत्र ( reproductive system ) ज्यादा स्वस्थ होते हैं। 

7. अलसी बीज आंखों के लिए भी फायदेमंद 

डायबिटिक में चूँकि आँखों से सम्बंधित समस्या बढ़ जाती है। ऐसे में अलसी बीज का सेवन बहुत अच्छा बताया जाता है। अलसी बीज में मौजूद ओमेगा 3 आँखों को स्वस्थ रखने में मददगार साबित होता है। यह मैकुलर डिजनरेशन के खतरे को भी कम करता है। 

अलसी  बीज प्रतिदिन कितनी मात्रा में खायी जाये ?

अलसी बीज का सेवन 10 ग्राम तक प्रतिदिन अर्थात दो चम्मच भूनकर पिसा हुआ पाउडर खाना सुरक्षित होता है। प्रतिदिन महलाओं को 1.1 ग्राम तथा पुरुषों को 1.6 ग्राम ओमेगा 3 की आवश्यकता होती है। 10 ग्राम अलसी बीज से 2.2 ग्राम ओमेगा 3 मिलता है। लेकिन भूनने के कारण ओमेगा 3 की मात्रा कम हो जाती है। इसलिए 10 ग्राम सुरक्षित बताया जाता है। लेकिन यदि 2 से 3 अखरोट प्रतिदिन खा रहे हैं तो अलसी बीज की मात्रा और कम करनी पड़ेगी ,करीब 7 ग्राम तक। यदि चिया के बीज खा रहे हैं तो अलसी की मात्रा और कम करनी चाहिए करीब 4 से 5 ग्राम अर्थात एक टीस्पून। जो मछली खाते हैं उन्हें अलसी बीज उस दिन नहीं खाना चाहिए जिस दिन मछली खाते हैं। 

अलसी बीज के नुकसान  

अलसी बीज ज्यादा खाने से कई प्रकार के नुकसान हो सकते है। यदि जरुरत से ज्यादा मात्रा में अलसी बीज खायी जाये तो शुगर लेवल बढ़ने लगता है। कारण है ओमेगा 3 की ज्यादा मात्रा का शरीर में पहुंचना। इसलिए सही मात्रा में ही अलसी खाये। ज्यादा खाने से कब्ज की शिकायत भी हो जाती है। इसकी तासीर गर्म होती है ,इसलिए गर्मी में कम अलसी बीज खाये और पानी की मात्रा का ध्यान रखें। अलसी खा रहे हैं तो ज्यादा पानी पियें। इसमें कई टॉक्सिक पदार्थ भी होते हैं जैसे कि – साइनाइड। यह ऑक्सीडाइज भी जल्दी होता है। इसलिए कच्ची अलसी  खाने की सलाह नहीं दी जाती। अलसी को भूनकर और पीसकर ही खाये। एक बार में ज्यादा अलसी बीज के पाउडर तैयार नहीं करे। पाउडर बनाने के बाद इसे एयर टाइट कंटेनर में रखें। 

अलसी बीज को भूनकर और पीसकर सेवन करना सर्वोत्तम है। कच्ची अलसी बीज में साइनाइड के अंश होते हैं जो भूनने से टूट जाते हैं और उनका साइड इफ़ेक्ट नहीं होता। 

ओमेगा 6 के फयदे और नुकसान 

ओमेगा 9 के फायदे 

हाई ब्लड प्रेशर डाइट 

वायरल फीवर का घरेलु उपचार

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हाई ब्लड प्रेशर डाइट / हाई बीपी में क्या खाये / High BP Diet https://healthysansaar.in/%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%88-%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%a1-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a4%b0-%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9f-high-bp-diet/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%2588-%25e0%25a4%25ac%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25a1-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25b6%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%25a1%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%2587%25e0%25a4%259f-high-bp-diet https://healthysansaar.in/%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%88-%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%a1-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a4%b0-%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9f-high-bp-diet/#respond Wed, 06 Oct 2021 07:23:13 +0000 https://healthysansaar.in/?p=1245 हाई ब्लड प्रेशर डाइट के विषय में जानने से पहले हमलोग यह जानते हैं कि हाई बीपी के कितने मरीज़ हमारे आस पास हैं। इससे हम इसकी गंभीरता को समझ पाएंगे। विश्व की जनसँख्या का 26 % अर्थात 972 मिलियन लोग हाई बीपी से पीड़ित हैं। 2017 के सर्वेक्षण के Read more…

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हाई ब्लड प्रेशर डाइट चार्ट

हाई ब्लड प्रेशर डाइट के विषय में जानने से पहले हमलोग यह जानते हैं कि हाई बीपी के कितने मरीज़ हमारे आस पास हैं। इससे हम इसकी गंभीरता को समझ पाएंगे। विश्व की जनसँख्या का 26 % अर्थात 972 मिलियन लोग हाई बीपी से पीड़ित हैं। 2017 के सर्वेक्षण के अनुसार 8  भारतीय में से एक भारतीय हाई बीपी का रोगी है। भारत में करीब 207 मिलियन लोग हाई बीपी से पीड़ित हैं। समय से पहले होने वाली मृत्यु का सबसे बड़ा कारण हाई ब्लड प्रेशर है। इसके लक्षण कभी – कभी सामने नहीं आते और यह मृत्यु का कारण बन जाता है। असंतुलित भोजन , घंटो बैठकर काम करना ,कम शारीरिक गतिविधि ,ख़राब स्लीपिंग साइकिल ,मोबाइल और wifi से निकलने वाले रेडिएशन ,स्ट्रेस ,प्रोसेस्ड फ़ूड ,ज्यादा नमक और चीनी के सेवन के कारण कम उम्र में लोग हाई बीपी के रोगी बन रहे हैं। इसलिए बहुत जरुरी है लोग हाई ब्लड प्रेशर डाइट को समझे और अपने खान – पान में परिवर्तन करें। 

हाई ब्लड प्रेशर डाइट / Diet for high blood pressure 

एक बार यह समझ आ जाये कि हमे क्या खाना चाहिए जिससे ब्लड प्रेशर नियंत्रण में रहे तो कोई भी अपना हाई ब्लड प्रेशर  डाइट चार्ट बना सकता है। हाई ब्लड प्रेशर डाइट में पोटैशियम की मात्रा 4700 mg और सोडियम 2000 mg के करीब रखना होता है। पोटैशियम की इस मात्रा को प्राप्त करने के लिए प्रचुर मात्रा में कच्ची हरी सब्जी और फल खाना आवश्यक होता है। हाई ब्लड प्रेशर में शामिल किये जाने वाले खाद्य पदार्थ निम्नलिखित हैं –

हर्बल चाय / Herbal tea 

ऐसे बहुत से पत्ते हमारे आस पास हैं जो उच्च रक्त चाप को सामन्य लेवल पर लाने में सहायता करते हैं। जामुन के पत्ते ,नीम के पत्ते ,अमरुद के पत्ते ,आम के पत्ते ,पीपल के पत्ते ,बेल के पत्ते ,सहजन के पत्ते / मोरिंगा लीफ ,करि पत्ता ,तुलसी पत्ता इत्यादि में से कोई भी एक प्रकार के 3 – 4 पत्ते उबालकर चाय बनायीं जा सकती है। यह हर्बल चाय उच्च रक्तचाप में कमी करने के साथ साथ शुगर का लेवल भी कम करता है। शुगर का लेवल कम होने से इन्सुलिन का लेवल भी कम होता है। ज्यादा शुगर इन्सुलिन के उत्पादन को ट्रिगर करता है। रक्त वाहिकाओं में इन्सुलिन का लेवल बढ़ने से धमनी की वाल /भित्ति मोटी होने लगती है क्योंकि इन्सुलिन ग्रोथ हॉर्मोन है। जिससे धमनी सख्त हो जाती है। फलस्वरूप ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है। इसलिए इन पत्तो की चाय पीने से शुगर और ब्लड प्रेशर दोनों कण्ट्रोल होता है। 

हर्बल चाय के प्रकार और उनके फायदे 

मेथी दाना / Fenugreek seeds 

10 ग्राम मेथी दाना एक गिलास पानी में भिगोकर रखा जाए और सुबह इसका पानी भी पिया जाये तथा मेथी दाना भी चबा कर खाया जाये तो उच्च रक्तचाप में कमी आती है। इसमें आयरन ,कैल्शियम ,मैग्नीशियम ,फाइबर और पोटैशियम की भी अच्छी मात्रा उपलब्ध है। इससे आयरन की कमी भी पूरी होती है और हड्डी भी मजबूत होते हैं। यह कोलेस्ट्रॉल का लेवल भी कम करता है और शुगर लेवल भी मेन्टेन करता है। 

मेथी के फायदे और नुकसान 

लहसुन / Garlic 

लहसुन का हाई ब्लड प्रेशर में सकारात्मक प्रभाव देखा गया है। लहसुन में कई प्रकार के कंपाउंड्स होते हैं ,जैसे – allicin , alliin , diallyl sulfide ,s-allyl cysteine . Allicin वोलेटाइल और अनस्टेबल होता है तथा पकाने पर यह नष्ट हो जाता है। उच्च रक्तचाप में कच्चा लहसुन एक से दो छोटी कलियाँ छीलकर ,बारीक़ स्लाइसेस में काटकर,काटने के 10 मिनट बाद खायी जाये तो यह बहुत असरकारी होता है। यह ब्लड थिनर का भी काम करता है और यह रक्त वाहिकाओं को फैलाने का कार्य करता है ,जिससे हाई ब्लड प्रेशर में कमी आती है। कच्चा लहसुन ज्यादा खाने से RBC की संख्या में कमी आती है। पका हुआ लहसुन ज्यादा मात्रा में खाया जाए तो एसिड रिफ्लक्स , बर्पिंग और पेट में भारीपन करता है। 3 – 4 ग्राम लहसुन सुरक्षित माना जाता है। 

ओटमील / Oat 

ओट भी हाई ब्लड प्रेशर डाइट में शामिल किया जाना चाहिए। इसमें मौजूद फाइबर ,मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट्स उच्च रक्तचाप  कम करने में मदद करते हैं। विभिन्न शोध के बाद वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि जो प्रतिदिन 5 ग्राम ओट का सेवन करते हैं ,उनके सिस्टोलिक प्रेशर में 7.7 mmHg तथा डायास्टोलिक प्रेशर में 5.5 mmHg की कमी पायी गयी है। इसलिए हाई ब्लड प्रेशर में ओट भी शामिल करें। 

हरी पत्तेदार सब्जी तथा कच्ची सब्जी / Leafy vegetable and raw vegetable 

National Center for Biotechnology Information के शोध के अनुसार हरी पत्तेदार सब्जी में एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। यह संयुक्त रूप से ह्रदय स्वास्थ्य के लिए  बेहतर साबित होते हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां ,खीरा ,टमाटर ,गाजर में फाइबर भरपूर होते हैं। इनमें पोटैशियम की उच्च मात्रा होती है। इनके सेवन से नाइट्रिक ऑक्साइड की मात्रा शरीर में बढ़ती है। रक्तवाहिकाओं में मौजूद कोलेस्ट्रॉल में कमी आती है ,प्लाक में भी कमी आती है और नए प्लाक भी नहीं बन पाते। रक्त वाहिकाओं में तनाव कम होता है तथा रक्तवाहिकाएं फैलती हैं। फलस्वरूप उच्च रक्तचाप में कमी आती है। इनके सेवन से इन्सुलिन सेंसिटिविटी भी बढ़ती है ,जिससे इन्सुलिन की आवश्यकता कम हो जाती है। इन्सुलिन के कम रहने से ब्लड वेसल सख्त होने से बचते हैं। हरी पत्तेदार सब्जियों में शामिल हैं – 

पत्ता गोभी 

फूल गोभी तथा इसके पत्ते 

ब्रॉकली 

चुकंदर तथा इसके पत्ते 

शलजम 

मूली तथा इसके पत्ते 

सरसों के पत्ते 

पालक 

चौलाई के पत्ते 

चुकंदर / Beetroot 

हाई ब्लड प्रेशर डाइट में चुकंदर और चुकंदर के पत्ते अवश्य शामिल करना चाहिए। चुकंदर में नाइट्रेट की अच्छी मात्रा होती है। जिसे हमारा शरीर नाइट्रिक ऑक्साइड में कन्वर्ट कर देता है। साथ ही इसमें एंटी ऑक्सीडेंट्स भी हैं जो नाइट्रिक ऑक्साइड के लाइफ स्पैन को बढ़ाते हैं। नाइट्रिक ऑक्साइड ब्लड वेसल के तनाव को कम कर ब्लड वेसल को फैलाने का काम करता है। इससे रक्त संचार अच्छा होता है और ब्लड प्रेशर में कमी आती है। इसके लिए टेस्ट भी किये गए जिसमें पाया गया कि चुकंदर खाने वालों के  सिस्टोलिक प्रेशर में 4 से 5 mmHg की कमी आयी। 

हाई ब्लू प्रेशर डाइट में शामिल करें ड्राई फ्रूट्स / Dry fruits 

हाई ब्लड प्रेशर डाइट में ड्राई फ्रूट्स बहुत जरूरी है। इसमें हाई बीपी को कम करने के लिए पोटैशियम ,मैग्नीशियम ,एंटीऑक्सीडेंट्स और हैल्दी फैट होते हैं। सभी ड्राई फ्रूट्स में से सबसे बेहतर हाई ब्लड प्रेशर में सादा पिस्ता और अखरोट माना जाता है। इन दोनों ड्राई फ्रूट्स में ओमेगा – 3 होते हैं जो बढे हुए ब्लड प्रेशर को सामान्य स्तर पर लाने में सहायता करते हैं। 

ड्राई फ्रूट्स ( 28 ग्राम / one ounce )Potassium 
अखरोट 125 मिलीग्राम 
पिस्ता 286 मिलीग्राम 
बादाम 208 मिलीग्राम 
मूंगफली 183 मिलीग्राम 
काजू 160 मिलीग्राम 
किशमिश 209 मिलीग्राम 

डार्क चॉकलेट /Dark  Chocolate 

डार्क चॉकलेट खाने से उच्च रक्तचाप में कमी आती है। डार्क चॉकलेट में फ्लवोनोइड्स होते हैं जो एक बहुत बढ़िया एंटीऑक्सीडेंट है। इसलिए लंच या डिनर के बाद डार्क चॉकलेट का छोटा टुकड़ा कभी – कभी खाया जा सकता है। 

हाई ब्लड प्रेशर डाइट का महत्वपूर्ण भाग है फल / Fruit 

फलों में कुदरती तौर पर पोटैशियम ,मैग्नीशियम ,आयरन ,अन्य मिनरल्स तथा एंटी ऑक्सीडेंट्स होते हैं। इनके सेवन से शरीर में नाइट्रिक ऑक्साइड का भी लेवल बढ़ता है। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस कम होता है। कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम होता है क्योंकि फल फाइबर के अच्छे श्रोत होते हैं। हाई ब्लड प्रेशर डाइट में विशेषकर साइट्रस फ्रूट ज्यादा अच्छे होते हैं। निम्बू , मौसम्बी ,संतरा , केला ,अनार ,अमरुद ,तरबूज तथा नारियल पानी ज्यादा अच्छे होते हैं। एक बार में ज्यादा फल खाने से अच्छा है दो बार फल खाये। एक सुबह नाश्ते में दूसरा शाम में। एक बार के लिए 150 ग्राम से 200 ग्राम तक फल पर्याप्त होता है। कुछ लोगों में फ्रुक्टोज इनटॉलेरेंस भी हो सकता है। कुछ में यह ट्राइग्लिसराइड बढ़ने का भी कारण हो सकता है। इसलिए सिमित मात्रा में ही फल खाये। 

फ्रूट्स ( 100 gm )पोटैशियम 
केला 358 mg 
नारियल पानी 250 mg 
अनार 236 mg 
संतरा 181 mg 
तरबूज 112 mg 
अमरुद 417 mg 
सेब 107 mg 

व्यक्ति को प्रतिदिन 4700 मिलीग्राम पोटैशियम की आवश्यकता होती है। इस लेवल तक पहुँचने के लिए आवश्यक है पोटैशियम युक्त फलों का सेवन करें। केला और अमरुद पोटैशियम के बहुत अच्छे श्रोत हैं। केला हर मौसम में उपलब्ध होता है। 

हाई ब्लड प्रेशर डाइट में आवश्यक ओमेगा – 3 युक्त खाद्य पदार्थ / Food items with omega -3 

ओमेगा – 3 फैटी एसिड ह्रदय स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। शोध में देखा गया कि ओमेगा – 3 के सेवन से सिस्टोलिक और डायास्टोलिक प्रेशर दोनों में कमी आयी। ओमेगा – 3 के मुख्य श्रोत हैं फैटी फिश ,अखरोट ,अलसी के बीज ,चिया सीड ,अंडा। जो शाकाहारी हैं उन्हें अलसी के बीज भूनकर और पीसकर खाना चाहिए ,अखरोट तथा चिया सीड रात को पानी में भिंगोकर सुबह खाना चाहिए। 

फ़ूड आइटम ( 28 gm ) ओमेगा – 3 
चिया सीड 5000 mg 
अलसी के बीज 6000 mg 
अखरोट 2500 mg 
एक अंडा 125 mg 

पढ़ें : ओमेगा 3 के फायदे और नुकसान 

बीज / Seeds 

बीज पोषण का भण्डार होते हैं। ये बीज हेल्दी फैट ,फाइबर ,प्रोटीन ,विटामिन्स ,एसेंशियल एमिनो एसिड तथा मिनरल्स से भरपूर होते है। सूरजमुखी के बीज ,कद्दू के बीज ,अलसी के बीज ,चिया के बीज तथा तरबूज के बीज ब्लड प्रेशर कम करने में अपना योगदान देते हैं। अलसी के बीज और चिया सीड के बगैर हाई ब्लड प्रेशर डाइट अधूरा है। अलसी के बीज को भूनकर और पीसकर खाया जाना चाहिए जबकि अन्य सभी बीजों को भिगोकर खाना ज्यादा अच्छा होता है। 

पढ़ें : 6 प्रकार के बीज और उनके फायदे 

दही / Curd 

उच्च रक्तचाप में दही का सेवन भी अच्छा बताया जाता है। गाय के दूध से बना दही ,जिसमें मलाई नहीं हो ,उस दही का सेवन उच्च रक्तचाप में उपयुक्त होता है। उच्च रक्तचाप के रोगी को लंच के आधे घंटे बाद गाय के दही से बना छाछ पीना चाहिए। इसमें मौजूद प्रोबायोटिक्स ह्रदय स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं। प्रोबायोटिक्स भोजन से कोलेस्ट्रॉल के अब्सॉर्प्शन में कमी लाता है। जिससे भोजन में मौजूद अतिरिक्त फैट शरीर से बाहर निकल जाता है। 

हाई ब्लड प्रेशर डाइट में क्या नहीं खाना चाहिए / Food Items avoiding in high blood pressure 

चाय और कॉफ़ी 

बेकरी आइटम 

प्रोसेस्ड फ़ूड 

डब्बा बंद चीजें 

पैक्ड ड्रिंक्स ,जूस ,सूप 

अचार ,केचप ,सॉस ,पापड़ 

चिप्स 

मैदा से बानी चीजें – पिज़्ज़ा ,बर्गर ,केक ,कुकीज़ ,बिस्कुट 

शराब ,सिगरेट 

नमकीन ड्राई फ्रूट्स 

अधिक नमक ,चीनी 

मलाईयुक्त दूध और दही 

हाई ब्लड प्रेशर डाइट चार्ट / High Blood Pressure Diet Chart 

सुबह -7 बजे लहसुन का एक जवा या रात का भिगोया हुआ दो चम्मच मेथीदाना। आधे घंटे बाद भिगोये हुए ड्राई फ्रूट्स – 4 अखरोट की गिरी ,6 बादाम की गिरी ,10 दाना पिस्ता। एक टेबल स्पून भिगोया हुआ चिया सीड। चिया सीड को अलग भिगोये। 
8 – 9 बजे एक केला या एक अमरुद या एक सेब या कोई भी मौसमी फल ( 150 ग्राम ) ,आधे घंटे बाद एक रोटी या एक कटोरी ओट या एक
कटोरी पॉजिटिव मिलेट या एक कटोरी दलिया और एक कटोरी सब्जी। या एक गेहूं का ब्रेड पीनट बटर के साथ और 2 अंडा। 
1 – 2 बजे खीरा ( 200 ग्राम ) या मूली ,शलजम ,गाजर और चुकंदर ( 100 ग्राम ) 15 मिनट बाद 2 रोटी या एक कटोरी चावल ,एक छोटी कटोरी दाल ,एक बड़ी कटोरी हरी सब्जी ,दाल और सब्जी में गाय का घी मिलाकर खाएं 
4 – 5 बजे हर्बल टी ,आधे घंटे बाद कोई भी फल 150 ग्राम या एक छोटी कटोरी स्प्राउट्स जिसमें आधा चम्मच जैतून का तेल मिलाएं और चुटकी भर सेंधा नमक। 
8 -9 बजे एक बड़ा टमाटर सलाद में या स्टीम्ड चुकंदर और गाजर 100  ग्राम तक। एक या दो रोटी एक बड़ी कटोरी हरी सब्जी ,एक चम्मच भूनकर पीसा हुआ अलसी का बीज चटनी की तरह लें। डिनर के एक घंटे बाद एक गिलास पानी अवश्य पिएं क्योंकि अलसी खाया है। 
  • जिन्हें छाछ पीना है वे लंच के आधे घंटे बाद पी सकते हैं 
  • जो दूध पीना चाहते हैं वो गाय का दूध बिना चीनी और बिना मलाई का , एक कप दूध सोने से पहले ले सकते हैं 
  • जो दूध वाली चाय पीना चाहते हैं वे ड्राई फ्रूट्स खाने के आधे घंटे पहले पी सकते हैं। 

और पढ़ें : 

मिलेट और पॉजिटिव मिलेट क्या होता है 

पिस्ता खाने के फायदे

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हाई ब्लड प्रेशर कम करने के लिए प्राणायाम / Pranayama for High BP https://healthysansaar.in/%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%88-%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%a1-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%87/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%2588-%25e0%25a4%25ac%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25a1-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25b6%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25ae-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25a8%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2587 https://healthysansaar.in/%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%88-%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%a1-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%87/#comments Thu, 23 Sep 2021 07:55:42 +0000 https://healthysansaar.in/?p=1234 हाई ब्लड प्रेशर अर्थात उच्च रक्तचाप को हाइपरटेंशन भी कहा जाता है। हाइपरटेंशन में रक्त का दबाव धमनी की भित्ति पर बढ़ जाता है। शरीर में गर्मी ज्यादा उत्पन्न होती है तथा मस्तिष्क और अन्य अंगों को रक्त अतिरिक्त दबाव के साथ झटके से प्राप्त होता है। हाई ब्लड प्रेशर Read more…

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हाई ब्लड प्रेशर अर्थात उच्च रक्तचाप को हाइपरटेंशन भी कहा जाता है। हाइपरटेंशन में रक्त का दबाव धमनी की भित्ति पर बढ़ जाता है। शरीर में गर्मी ज्यादा उत्पन्न होती है तथा मस्तिष्क और अन्य अंगों को रक्त अतिरिक्त दबाव के साथ झटके से प्राप्त होता है। हाई ब्लड प्रेशर कम करने में प्राणायाम और योगाभ्यास बहुत असरकारी होते हैं। हाई ब्लड प्रेशर कम करने के लिए उन प्राणायाम और योगाभ्यास का चयन किया जाता है जिनसे शरीर को शीतलता प्रदान हो ,मस्तिष्क शांत हो और अंगो को उचित ऑक्सीजन प्राप्त हो। इस लेख में हाई बीपी को नार्मल लेवल पर लाने के लिए किये जाने वाले प्राणायाम के विषय में जानेंगे। 

हाई ब्लड प्रेशर के लिए प्राणायाम

हाई ब्लड प्रेशर कम करने के लिए  प्राणायाम / Pranayama for lowering high blood pressure 

नाड़ी शुद्धि प्राणायाम / नाड़ी शोधन प्राणायाम / Nadi Shuddhi Pranayama 

नाड़ी शुद्धि प्राणायाम शरीर और मन को शांत करती है। यह शरीर को ठंढक प्रदान करती है। यह घबराहट ,बेचैनी और नींद की परेशानी को भी ठीक करती  है। इसका अभ्यास सुबह खाली पेट करनी चाहिए। प्राणायाम कोई भी करें सुबह खाली पेट ही करें। प्राणायाम की शुरुआत नाड़ी शोधन प्राणायाम से करनी चाहिए। 

इसके लिए दरी या मैट पर सुखासन , पद्मासन या सिद्धासन में बैठे। अपनी पीठ और गर्दन को सीधा रखें। 

सबसे पहले लम्बी सांस लें और छोड़ें। अब दाएं हाथ के अंगूठे  से दाएं नासिका / right nostril को बंद करें। बायां हाथ ज्ञान मुद्रा में घुटने पर रहेगा। 

बाएं नासिका से लम्बी श्वास अंदर भरें और बिना अंदर श्वास रोके , लम्बी श्वास बाएं नासिका से ही बाहर निकाल दें। जितना समय श्वास अंदर लेने में लगा उतना ही समय श्वास को बाहर निकालने में भी लगना चाहिए। इसके लिए मन में गिनती 5 तक करें श्वास लेते समय भी और श्वास छोड़ते समय भी। 

पांच बार बाएं नासिका से श्वास लेने और छोड़ने के बाद अब दाएं नासिका से इसी तरह श्वास लेना और छोड़ना है। बाएं नासिका को  बंद करने के लिए दाएं हाथ का ही प्रयोग करें। 

इसमें दो बातें ध्यान देनी होगी ,शुरुआत हमेशा बाएं नासिका से ही करें तथा श्वास लेने और श्वास छोड़ने में समान समय लगना चाहिए। 

यह नाड़ी शुद्धि प्राणायाम का सिंपल वेरिएशन है , इसका एडवांस वेरिएशन भी होता है। जिसमें अन्तः कुम्भक और बाह्य कुम्भक दोनों लगता है। श्वास भरने के बाद श्वास को अंदर रोकना अन्तः कुम्भक और श्वास छोड़ने के बाद श्वास लेने में रुकना बाह्य कुम्भक कहलाता है।अनुलोम विलोम को कुम्भक के साथ किया जाये तो एडवांस वेरिएशन का नाड़ी  शोधन प्राणायाम कहलाता है। हाई ब्लड प्रेशर कम करने के लिए पहले सिंपल फिर एडवांस वेरिएशन का नाड़ी  शोधन प्राणायाम करें। 

हाई ब्लड प्रेशर कम करने के लिए अनुलोम विलोम प्राणायाम / Anulom Vilom Pranayama 

अनुलोम विलोम प्राणायाम शरीर को भरपूर ऑक्सीजन प्रदान करता है। इससे मस्तिष्क शांत होती है। यह शरीर को ठंढा रखता है। यह शरीर की गर्मी शांत करने के साथ साथ उच्च रक्तचाप कम करने का भी काम करता है। श्वास अंदर भरते समय आराम से ठंढी साँसों को महसूस करते हुए श्वास भरने से यह ज्यादा असरकारी होता है। 

इसके लिए दरी या मैट पर सुखासन , पद्मासन या सिद्धासन में बैठे। अपनी पीठ और गर्दन को सीधा रखें। 

सबसे पहले लम्बी सांस लें और छोड़ें। अब दाएं हाथ के अंगूठे  से दाएं नासिका / right nostril को बंद करें। बायां हाथ ज्ञान मुद्रा में घुटने पर रहेगा। बाएं नासिका अर्थात चंद्र स्वर से श्वास अंदर भरें ,अब बाएं नासिका को बंद कर दाएं नासिका से श्वास बाहर निकाले। फिर दाएं नासिका से ही श्वास अंदर भरें और बाएं नासिका से श्वास बाहर निकालें। अब बाएं नासिका से श्वास अंदर भरें और दाएं नासिका से बाहर निकालें। इसी तरह यह क्रम चलता रहेगा। 

इसमें ध्यान रखने वाली बातें हैं – दाएं हाथ की उँगलियों से ही नासिका को बंद करें ,बाएं हाथ का प्रयोग नहीं करें। पहला श्वास बाएं नासिका से ही अंदर भरना है। श्वास अंदर भरने और बाहर निकालने में समान अवधी लगनी चाहिए। इसमें न तो अन्तः कुम्भक लगाना है और न ही बाह्य कुम्भक। 

हाई ब्लड प्रेशर कम करने में रामबाण शीतली प्राणायाम / Shitali Pranayama 

शीतली प्राणायाम करने से शरीर की गर्मी शांत होती है , पित्त दोष शांत होता  है ,मस्तिष्क की थकावट दूर होती  है। 

यह लिवर के कार्य को बेहतर बनाता है तथा बाइलजूस का श्राव बढ़ाता है। फोड़े – फुंसी भी ठीक होते हैं। इसे करने से नींद भी अच्छी आती है। तनाव भी  यह कम करता है। इससे एसिडिटी की समस्या भी ठीक होती है तथा इम्यून सिस्टम बेहतर होता है। यह शरीर को हाइड्रेट रखता है। हाई ब्लड प्रेशर कम करने के लिए यह अति उत्तम प्राणायाम है। 

इसके लिए दरी या मैट पर सुखासन , पद्मासन या सिद्धासन में बैठे। अपनी पीठ और गर्दन को सीधा रखें। हाथों को ज्ञान मुद्रा में घुटने पर रखें। 

इसमें जीभ को स्ट्रॉ की तरह मोड़ते हैं। इसके लिए ओठ से छोटा O का आकर बनाते हैं और जीभ को थोड़ा बाहर निकाल स्ट्रॉ की तरह फोल्ड करते हैं। यदि जीभ फोल्ड नहीं हो पा रहा हो तो होंठो से छोटा O बनाते हुए श्वास अंदर भरते हैं। श्वास ठंढी महसूस होगी क्योंकि श्वास को अंदर जाने के लिए कम सरफेस एरिया मिला। 

श्वास अंदर भरकर श्वास को सामर्थ्यानुसार अंदर रोक कर रखते हैं। इसके लिए श्वास अंदर भरने के बाद गले को नीचे कर ठुड्डी को छाती से टिकाते हैं। सामर्थ्यानुसार श्वास रोकने के बाद गर्दन सीधा कर नाक से श्वास बाहर निकाल देते हैं। ऐसा 3 बार ,5 ,7 ,9 ,11 या 21 बार अपनी क्षमता अनुसार करते हैं। 

चन्द्रभेदी प्राणायाम / Chandrabhedi Pranayam

चन्द्रभेदी प्राणायाम करने से मानसिक तनाव दूर होता है। यह आँखों के लिए भी बहुत अच्छा होता है। यह शरीर को ठंढा रखता है।चनद्रभेदी प्राणायाम करने से त्वचा रोग दूर होता है ,पेट की गर्मी शांत होती है ,मुंह के छाले ठीक होते हैं , पित्ताशय का कार्य बेहतर होता है तथा थकान दूर होती है। हाई ब्लड प्रेशर कम करने के लिए चन्द्रभेदी प्राणायाम अवश्य करें। 

इसके लिए सुखासन में बैठकर ज्ञान मुद्रा में हाथों को रखें। पीठ और गर्दन सीधी रखें। 

दाएं हाथ के अंगूठे से दाएं नासिका को बंद करें। बाएं नासिका से लम्बी सांस अंदर भरें और बायीं नासिका को भी अपनी दाएं हाथ की ऊँगली से बंद करें। 

सामर्थ्यानुसार श्वास अंदर भर कर रखें। अब दाएं नासिका से अंगूठे को हटाएं और धीरे – धीरे श्वास बाहर छोड़ें। 

फिर से अंगूठे से दाएं नासिका बंद करें और श्वास अंदर बाएं नासिका से भरें। चन्द्रभेदी प्राणायाम का अभ्यास 10 मिनट करें। 

हमने श्वास बाएं नासिका से लिया जिसे चन्द्र स्वर कहते हैं और यह शीतल होता है। इसलिए इसे चन्द्रभेदी प्राणायाम कहा जाता है। 

इस तरह हमने चार प्राणायाम देखा जिनका उच्च रक्तचाप कम करने में बहुत ही ज्यादा असर देखा गया है। कोई भी दो प्राणायाम एक दिन में किया जाये 15 से 20 मिनट के लिए तो निश्चित लाभ मिलता है। 

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हाई ब्लड प्रेशर क्या होता है ? 

हाई ब्लड प्रेशर एक सामान्य बीमारी है जिसमें ह्रदय द्वारा पंप किये गए रक्त के कारण दबाव धमनियों की भित्ति पर बढ़  जाता है। रक्तचाप अर्थात ब्लड प्रेशर दो चीजों से निर्धारित होती है पहला रक्त की fluidity / तरलता और दूसरा धमनी में किसी भी तरह का रुकावट का होना। रुकावट का कारण धमनी के लचीलेपन में कमी या धमनी में प्लाक का जमना भी हो सकता है। 

हाई ब्लड प्रेशर के लक्षण ,कारण और उपचार

हमारा दिल रक्त को शरीर के सभी भागों में पहुँचाने का कार्य करता है। रक्त जब शुद्ध होकर फेफड़े से दिल में प्रवेश करता है तब दिल पंप करके उस रक्त को शरीर के सभी हिस्सों में पहुंचता है। दिल के पम्प करने पर आर्टरीज वाल /धमनियों की भित्ति पर जो प्रेशर /दबाव बनता है वह ब्लड प्रेशर कहलाता है जिसे हिंदी में रक्तचाप कहते हैं। इस प्रेशर को सिस्टोलिक प्रेशर कहते हैं जो सामान्यतः 120 होता है। दो पम्पिंग के बीच में दिल रेस्ट कर लेता है ,इस समय धमनी पर प्रेशर घट जाता है जिसे डायास्टोलिक प्रेशर कहते हैं। यह सामन्यतः 80 होता है। जब हमलोग ब्लड प्रेशर चेक करवाते हैं तो डॉक्टर हमे 120 /80 जैसी संख्या बताते हैं। इसमें 120 सिस्टोलिक प्रेशर हुआ और 80  डायास्टोलिक प्रेशर हुआ। 

जब सिस्टोलिक 120 से ज्यादा और डायास्टोलिक 80 से ज्यादा हो जाये तब मेडिकली हाई ब्लड प्रेशर की स्थति होती है। लेकिन सिस्टोलिक 120 से 130 के बीच हो तब भी ब्लड प्रेशर सामान्य ही माना जाता है। उसी तरह डायास्टोलिक 80 से 90 के बीच सामान्य माना जाता है। ब्लड प्रेशर को मरकरी प्रति मिलीमीटर ( mmHg ) में मापा जाता है। 

रक्तचाप / ब्लड प्रेशर की श्रेणी 

नार्मल ब्लड प्रेशर 

सिस्टोलिक प्रेशर  91 – 120 

डायास्टोलिक प्रेशर  61 – 80 

लो ब्लड प्रेशर ( हाइपोटेंशन )

सिस्टोलिक प्रेशर – 90 mmHg या उससे कम 

डायास्टोलिक प्रेशर – 60 mmHg या उससे कम 

लो ब्लड प्रेशर के लक्षण ,कारण और उपचार

लो बीपी का उपचार योगासन तथा आहार से

हाई ब्लड प्रेशर ( हाइपरटेंशन )

सिस्टोलिक प्रेशर – 120 mmHg से ज्यादा 

डायास्टोलिक प्रेशर – 80 mmHg से ज्यादा 

हाई ब्लड प्रेशर के लक्षण / Symptoms of high blood pressure 

हाई ब्लड प्रेशर के लक्षण सभी लोगों में एक जैसे नहीं होते। कुछ लोगों में मामूली ब्लड प्रेशर के बढ़ने पर लक्षण दिखने लगते हैं जबकि कुछ लोगों में खतरनाक लेवल तक ब्लड प्रेशर बढ़ जाने पर भी लक्षण नहीं दिखते। उन्हें पता तब चलता है जब वे किसी अन्य बीमारी का इलाज करवाने जाते हैं। सामान्यतौर पर हाई ब्लड प्रेशर में निम्न लक्षण दिखते हैं –

  • सिर दर्द रहना 
  • नाक से खून बहना 
  • आँखों में खिचाव महसूस होना और धुंधला दिखना 
  • सांस लेने में तकलीफ़ महसूस होना 
  • चक्कर आना तथा उलझन जैसी स्थिति लगना 
  • घबराहट महसूस होना 
  • कुछ भी समझने और बोलने में कठिनाई महसूस होना 
  • बहुत कमजोरी महसूस होना और पैरों का अचानक सुन्न होना 
  • गर्मी और बेचैनी के साथ बहुत ज्यादा पसीना आना 

हाई ब्लड प्रेशर के कारण / Causes of high blood pressure 

हाई ब्लड प्रेशर के कारण को दो भागों में बांटा जाता है। प्राइमरी और सेकेंडरी। 

हाई ब्लड प्रेशर के प्राइमरी  कारण 

इसमें ब्लड प्रेशर बढ़ने के कारण का सही सही अनुमान नहीं लग पाता। समय के साथ धीरे – धीरे ब्लड प्रेशर हाई होने लगता है। इसके कुछ कारण निम्नलिखित हैं –

बढ़ती उम्र – जैसे जैसे उम्र बढ़ती है किसी न किसी कारण अधिकतर लोगों में ब्लड प्रेशर भी बढ़ने लगता है। 

आनुवंशिकता – यदि परिवार में किसी को हाई बी पी की समस्या है तो संतान को भी यह समस्या होने की सम्भावना रहती है। 

मोटापा – ब्लड प्रेशर हाई करने में मोटापा भी एक कारण है। 

शिथिल जीवन शैली – व्यायाम न करने और कम चलने से खून के संचार पर असर होता है। इससे ह्रदय की मांसपेशियां भी कमजोर होती हैं। फलस्वरूप ब्लड प्रेशर हाई होने लगता है।  

धूम्रपान करना – धूम्रपान  करने से धमनी सख्त और संकीर्ण होती है जिससे ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है। 

शराब पीना – नियमित रूप से शराब पीना भी उच्च रक्चाप का कारण होता है। 

चाय – कॉफ़ी –  ज्यादा चाय कॉफी पीना भी उच्च रक्तचाप का कारण होता है। इसका कारण है इसमें मौजूद टैनिन ,कैफीन और शुगर। शुगर की अधिक मात्रा को संतुलन में रखने के लिए इन्सुलिन की मात्रा बढ़ जाती है। इन्सुलिन ग्रोथ हार्मोन है ,फलस्वरूप यह ब्लड वेसल वाल को मोटा और सख्त कर देता है। इस तरह ब्लड प्रेशर हाई होने लगता है। 

नमक की अधिकता – ब्लड में सोडियम की मात्रा ज्यादा होने से भी ब्लड प्रेशर हाई होने की सम्भावना बढ़ जाती है। 

वसायुक्त भोजन – फ्राइड फ़ूड खाने से ब्लड में ट्रांस फैट और सैचुरेटेड फैट की उपस्थिति बढ़ जाती है जो उच्च रक्तचाप का कारण बनता है। 

भोजन में फाइबर की कमी – ब्लड प्रेशर हाई होने का यह सबसे बड़ा कारण है। भोजन में फाइबर की कमी से कोलेस्ट्रॉल बढ़ने लगता है ,शुगर की मात्रा भी बढ़ जाती है ,लिवर भी प्रभावित होता है। ये सभी चीजें संयुक्त रूप से ब्लड प्रेशर बढ़ाने का काम करते हैं।  

गर्भावस्था – गर्भवस्था के दौरान भी उच्च रक्तचाप की सम्भावना बढ़ जाती है। 

तनाव – विभिन्न अध्ययनों के अनुसार तनाव का उच्च रक्तचाप से सीधा सम्बन्ध है। 

हाई ब्लड प्रेशर के सेकेंडरी कारण 

कई बार हाई ब्लड प्रेशर की समस्या किसी अन्य बिमारियों  की  वजह से होती है। इसे सेकेंडरी हाई ब्लड प्रेशर कहा जाता है। कुछ बीमारियां जिनके कारण उच्च रक्तचाप की सम्भावना बढ़ जाती है निम्नलिखित हैं –

स्लीप एपनिया – इसमें स्लीपिंग /निद्रा के दौरान सांस लेने में दिक्कत होती है। कभी कभी व्यक्ति बिलकुल ही सांस नहीं ले पाता है। 

किडनी सम्बन्धी समस्या 

एड्रेनल ग्लैंड में ट्यूमर 

डायबिटीज – डायबिटीज के साथ  बी पी की समस्या होना निश्चित है। 

दवाइयाँ – गर्भनिरोधक गोलियां ,दर्दनिवारक दवा ,मधुमेह की दवा ये सभी हाई बी पी के कारण बनते हैं। 

ड्रग्स – कोकीन जैसे ड्रग्स भी हाई बी पी के सेकेंडरी कारण है 

लिवर की समस्या – लिवर से सम्बंधित कोई भी समस्या हो तो उसका असर ब्लड प्रेशर पर पड़ता है। 

हाई ब्लड प्रेशर का उपचार / Treatment of High Blood Pressure 

हाई ब्लड प्रेशर की दवा 

हाई बीपी का पता लगने पर इलाज क्या करना है यह डॉक्टर पर निर्भर करता है। यदि हाई बीपी का कारण कोई बीमारी या कोई दवा है तो डॉक्टर दवा बीमारी के अनुसार निर्धारित करेंगे या जो मेडिसिन चल रही है उसे बंद कर कोई और मेडिसिन दे सकते हैं। कई बार हाई बीपी का सटीक कारण पता नहीं चलता ऐसे में डॉक्टर हाई बीपी के लेवल के अनुसार दवा की मात्रा निर्धारित करते हैं। यह दवा रोगी को प्रतिदिन जीवन भर लेनी पड़ती है। 

जीवनशैली में परिवर्तन 

स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर उच्च रक्तचाप नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इसके अंतर्गत निम्न बातों पर ध्यान दिया जाता है –

फिजिकल एक्टिविटी 

उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में नियमित व्यायाम ,सैर और योगा  बहुत असरकारी होता है। अनुलोम विलोम ,भ्रामरी प्राणायाम और शीतकारी प्राणायाम बढे हुए ब्लड प्रेशर को नार्मल करने में बहुत मददगार साबित होते हैं। 

हाई ब्लड प्रेशर के नियंत्रण के लिए वजन नियंत्रण में रखना आवश्यक

बढ़ा हुआ वजन ब्लड प्रेशर को भी बढ़ाने का कार्य करता है। वजन का बढ़ना इस बात की तरफ इशारा करता है कि शरीर में समस्या बढ़ने लगी है और कई बिमारियों की शुरुआत होने वाली है या हो चुकी है। इसलिए बहुत जरुरी है कि वजन को मेन्टेन करके रखा जाये। 

तनाव कम करना 

हाई बीपी कम करने के लिए तनाव कम करना आवश्यक है। नियमित व्यायाम और मैडिटेशन करने से सेरोटोनिन हार्मोन का उत्पादन बढ़ता है। सेरोटोनिन हैप्पी हार्मोन कहलाता है। केला ,अश्वगंधा आदि का सेवन भी तनाव कम करने में मदद करते हैं। 

धूम्रपान और शराब का सेवन बंद करना 

सीगरेट ,शराब और तम्बाकू का सेवन बंद किये बगैर ब्लड प्रेशर  नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इनके सेवन से लिवर ख़राब होता है ,लिवर का उचित कार्य नहीं करना ब्लड प्रेशर बढ़ने का कारण बनता है। 

स्लीपिंग साइकिल सही रखना 

स्लीपिंग साइकिल सही नहीं रहने से हाई बीपी या लो बीपी दोनों में से कोई भी समस्या हो सकती है। पर्याप्त नींद लेने से बीपी की समस्या में राहत मिलती है। जल्दी सोने से नींद अच्छी आती है और सुबह जल्दी जगने से सैर करना तथा व्यायाम करना संभव हो पाता है। 

हाई ब्लड प्रेशर नियंत्रण के लिए फल ,सलाद और ड्राई फ्रूट्स का सेवन 

यदि भोजन में कच्ची हरी सब्जी ,फल और ड्राई फ्रूट्स का सेवन बढ़ा दिया जाये तो उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करना  बहुत आसान हो जाता है। इसका कारण है इनमें मौजूद फाइबर ,पोटैशियम और मैग्नीशियम जैसे मिनरल्स तथा एंटीऑक्सीडेंट्स। ड्राई फ्रूट्स में ओमेगा 3 और ओमेगा 6 फैटी एसिड होते हैं जो कोलेस्ट्रॉल लेवल मेन्टेन करने का काम करते हैं। फलस्वरूप ब्लड प्रेशर की समस्या से छुटकारा मिलना संभव हो पाता है। 

वसायुक्त भोजन से परहेज 

फ्राइड फ़ूड तथा मलाईवाले दूध और दूध से बनी चीजों का सेवन कम करना चाहिए। खाना पकाने के लिए कम तेल का प्रयोग कर पके हुए खाने में ऊपर से कोल्ड प्रेस्ड सरसों तेल ,ओलिव आयल , मूंगफली तेल इत्यादि मिलाकर खाना चाहिए। एक दिन में दो चम्मच तेल एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त होता है। कोल्ड प्रेस्ड आयल में ओमेगा 3  और ओमेगा 6 होते हैं ,यह ह्रदय को स्वस्थ रखते हैं तथा बढे हुए बीपी को भी कम करते हैं। 

चाय – कॉफ़ी का सेवन कम करें 

लोगों को एक दिन में 3 से 4 कप चाय – कॉफ़ी  की आदत होती है। यदि बी पी बढ़ चूका है तो बहुत जरुरी है चाय कॉफ़ी का सेवन  बंद कर दें या बहुत कम कर दें। इसके जगह हर्बल चाय या ग्रीन टी पिया जा सकता है। करी पत्ता की चाय ,सहजन के पत्ते की चाय /मोरिंगा टी , करेले के पत्ते की चाय ,जामुन के पत्ते की चाय ,अमरुद के पत्ते की चाय बहुत ही लाभकारी होते है बढे हुए बीपी को कम करने में। इन्हें एक एक सप्ताह के लिए बदल बदल कर पीना चाहिए। 

कम नमक खाएं 

उच्च रक्त चाप में नामक का सेवन बहुत कम कर दिया जाता है। इस बात को हम सभी जानते हैं। खाना पकाने में भी कम नमक का प्रयोग करना चाहिए और ऊपर से मिलाकर कच्चा नमक बिलकुल नहीं खाना चाहिए। सोडियम  की मात्रा कम रखने और पोटैशियम युक्त भोजन करने से हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करना आसान हो जाता है। 

लहसुन , मेथीदाना और अलसी बीज का सेवन 

लहसुन की कलियाँ ,भिंगोया हुआ मेथी दाना और भूना हुआ अलसी बीज का सेवन हाई ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करते हैं। ऐसे कोई भी फ़ूड आइटम जिसमें पोटैशियम और मैग्नीशियम की मात्रा अच्छी हो ,ओमेगा 3 और ओमेगा 6 मौजूद हो वो फ़ूड आइटम हाई बी पी का लेवल कम करने का काम करते हैं। 

हाई ब्लड प्रेशर का नुकसान 

हाई ब्लड प्रेशर को साइलेंट किलर कहा जाता है। रक्तचाप जितना ज्यादा होगा ,हमारी धमनियों पर दबाव उतना ज्यादा होगा। इससे हमारे शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचता है। दिल का दौरा पड़ने का खतरा भी रहता है साथ ही किडनी ,लिवर और आँख इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं। ब्लड प्रेशर ज्यादा रहने से मेटाबोलिक सिंड्रोम की समस्या उत्पन्न हो जाती है। मेटाबोलिक सिंड्रोम के अंतर्गत एक साथ 5 से 7 कम्प्लीकेशन शुरू हो जाते हैं। इसलिए ब्लड प्रेशर को हमेशा कण्ट्रोल में रखने का प्रयास करना चाहिए।

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लो बीपी के उपचार – योगासन और आहार / Yoga, food for Low BP https://healthysansaar.in/%e0%a4%b2%e0%a5%8b-%e0%a4%ac%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%89%e0%a4%aa%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0-low-bp-ke-upchar/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b2%25e0%25a5%258b-%25e0%25a4%25ac%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%2589%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%259a%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b0-low-bp-ke-upchar https://healthysansaar.in/%e0%a4%b2%e0%a5%8b-%e0%a4%ac%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%89%e0%a4%aa%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0-low-bp-ke-upchar/#respond Fri, 13 Aug 2021 09:46:47 +0000 https://healthysansaar.in/?p=1197 लो ब्लड प्रेशर अर्थात निम्न रक्तचाप का अर्थ है रक्तचाप का सामान्य से कम हो जाना। ऐसे में रक्त मस्तिष्क ,किडनी ,आँखों के पास तथा शरीर के अन्य अंगों में पर्याप्त नहीं पहुँच पाता। इस अवस्था में व्यक्ति को चक्कर आते हैं तथा आँखों के सामने अँधेरा छा जाता है। Read more…

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लो ब्लड प्रेशर अर्थात निम्न रक्तचाप का अर्थ है रक्तचाप का सामान्य से कम हो जाना। ऐसे में रक्त मस्तिष्क ,किडनी ,आँखों के पास तथा शरीर के अन्य अंगों में पर्याप्त नहीं पहुँच पाता। इस अवस्था में व्यक्ति को चक्कर आते हैं तथा आँखों के सामने अँधेरा छा जाता है। लो बीपी  भी उतना ही खतरनाक है जितना हाई ब्लड प्रेशर। दोनों तरह की परेशानी उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है। लो बीपी के उपचार इसके कारण पर निर्भर करता है। लो बीपी के  उपचार में  योगासन और कुछ आहार में बदलाव करना आवशयक है। हाई बीपी को नियंत्रण में रखने के लिए अनगिनत दवाइयां हैं जबकि लो बीपी की दवाइयां उतनी कारगर नहीं होती। इसे आहार और योगासन तथा प्राणायाम से कण्ट्रोल किया जा सकता है। 

लो ब्लड प्रेशर क्या होता है ? लो ब्लड प्रेशर कितना होता है ?

लो ब्लड प्रेशर का अर्थ है ब्लड प्रेशर का सामान्य से कम हो जाना। लो ब्लड प्रेशर को हाइपोटेंशन भी कहा जाता है। वयस्कों में नार्मल ब्लड प्रेशर 120 / 80 mmHg से 90 / 60 mmHg के बीच रहता है। विशेषज्ञों के अनुसार 90 / 60 mmHg से कम ब्लड प्रेशर लो ब्लड प्रेशर कहलाता है। दोनों में से कोई भी संख्या इससे कम हो तो ब्लड प्रेशर लो कहलाता है। यदि किसी का ब्लड प्रेशर 100 / 55 mmHg है तब भी ब्लड प्रेशर लो कहा जायेगा। 

120 / 80 mmHg ( millimeter of mercury )  में 120 सिस्टोलिक प्रेशर होता है और 80 डायास्टोलिक प्रेशर होता है। सिस्टोलिक प्रेशर वह प्रेशर है जिस प्रेशर में  ह्रदय की मांसपेशियां संकुचित होकर धमनियों में रक्त पंप करती है। डायास्टोलिक प्रेशर तब नोट किया जाता है जब ह्रदय की मांसपेशियां संकुचन के बाद शिथिल हो जाती हैं। ब्लड प्रेशर सही होने से रक्त का संचार सभी अंगो तक ढंग से होता है। ब्लड प्रेशर कम होने पर सभी अंगो तक रक्त प्रॉपर नहीं पहुँच पाता। 

लो बीपी के उपचार में प्राणायाम और योगासन 

लो ब्लड प्रेशर में सुधार के लिए प्राणायाम और योग का अभ्यास बहुत प्रभावी होता है।  इससे निम्न रक्तचाप सामान्य रक्तचाप की तरफ बढ़ने लगता है। आइये देखते हैं कि निम्न रक्तचाप में कौन से प्राणायाम और योगासन बेहतर होते हैं। 

  1. कपालभाति प्राणायाम 
  2. भस्त्रिका प्राणायाम 
  3. सूर्यभेदी प्राणायाम 
  1. कपालभाति प्राणायाम 

कपालभाति का अभ्यास सुबह खाली पेट करना अच्छा होता है। कपालभाति करने के लिए सुबह खाली पेट आराम से पीठ को सीधा रखते हुए पद्मासन या सुखासन में बैठ जाये। हाथो को ज्ञान मुद्रा में दोनों जांघो पर रखें। अपना ध्यान साँस पर केंद्रित करें। सामान्यतौर पर जैसे श्वास लेते हैं ,वैसे ही कपालभाति में साँस लें।श्वास छोड़ते समय  तेजगति से नाक से आवाज़ के साथ झटके से श्वास बाहर निकालें। पेट भी झटके से अंदर जायेंगे। श्वास बाहर निकालते समय पेट भी तेज़ी से झटके के साथ अंदर जाता है। प्राणायाम करते समय आँखें बंद और चेहरे पर सुख का भाव होना चाहिए। सामन्यतः एक सेकंड में एक स्ट्रोक अर्थात एक बार श्वास बाहर छोड़ते हैं। शुरुआत में एक मिनट में 20  स्ट्रोक ही रखना सही होता है। लो बीपी के उपचार में कपालभाति प्राणायाम बहुत फायदेमंद होता है। 

  1. भस्त्रिका प्राणायाम

इसका अभ्यास भी सुबह खाली पेट करना चाहिए। भस्त्रिका प्राणायाम करने के लिए पद्मासन या सुखासन में बैठे। पीठ सीधी रखें तथा दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें। इसमें श्वास लेना और छोड़ना दोनों ही प्रक्रिया वेग के साथ की जाती है। आवाज के साथ लम्बी श्वास लेते हुए छाती में हवा भरे और वेग के साथ श्वास बाहर छोड़े। इसमें श्वास लेना और छोड़ना एक गति में होता है। श्वास को अंदर भरकर नहीं रखा जाता है। गर्मी में यह प्राणायाम 2 – 3 मिनट किया जाता है और सर्दी में 5 मिनट तक कर सकते हैं। एक मिनट में अपनी क्षमता अनुसार 30 स्ट्रोक से 60 स्ट्रोक पूर्ण करते हैं। इससे शरीर में रक्त का बहाव सही होता है तथा हर अंग तक रक्त पहुँचता है। लो बीपी के उपचार में इसका बहुत योगदान होता है। 

  1. सूर्यभेदी प्राणायाम 

नाक के दाएं छिद्र / नासिका को सूर्य स्वर और बाएं छिद्र को चंद्र स्वर कहते हैं। सूर्यभेदी प्राणायाम में सूर्य स्वर अर्थात दाएं नासिका से श्वास ली जाती है और बाएं नासिका से श्वास छोड़ी जाती है। सबसे पहले पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं। पीठ और गर्दन सीधी रखें। नाक के बाएं छिद्र को अपनी ऊँगली से बंद करें और दाएं छिद्र से श्वास अंदर भरें। लम्बी श्वास भरने के बाद नाक के दाएं छिद्र को भी अपनी ऊँगली से बंद कर दें। श्वास को सामर्थ्यानुसार अंदर रोक कर रखें। दाएं छिद्र को बंद ही रखें और बाएं छिद्र से श्वास धीरे धीरे बाहर छोड़े। इस तरह सूर्यभेदी प्राणायाम का एक चक्र पूरा हुआ। यह गर्मी प्रदान करता है इसलिए पित्त प्रकृति वाले इसका अभ्यास ज्यादा न करें। 

लो बीपी के उपचार में ऊपर बताएं गयें तीनो प्राणायाम असरकारी है। 

लो बीपी के उपचार हेतु योग मुद्राएं 

लो बीपी के उपचार में योगासन का भी बहुत असर देखा गया है। नीचे  बताये गए 6 योगासन लो बीपी के रोगियों के लिए सुझाएं गए हैं। 

  1. उत्तान आसन / Standing forward bend pose  
लो बीपी के उपचार
उत्तान आसन

लो बीपी के उपचार में उत्तानासन का अभ्यास बहुत असरकारी है। यह आसन मस्तिष्क तक रक्त को पहुंचाता है। इससे चक्कर आना कम होता है और थकावट भी कम महसूस होता है। इस आसन का अभ्यास करने के लिए सीधे खड़े हो जाएं ,पैरों को साथ में जोड़ कर रखें और हाथों को शरीर के साइड में रखें। धड़ को कूल्हे के जोड़ों से झुकाएं। हाथों को जमीं पर दोनों साइड टिकाएं ,आगे की और झुकी हुई अवस्था में सिर घुटनो के निचे तक लाएं। इस अवस्था में 30 सेकंड तक खड़े रहे। अब सामन्य अवस्था में वापस आ जाएं। 

  1. अधोमुख श्वानासन / Downward facing dog pose 
लो बीपी के उपचार

यह आसन मस्तिष्क को शांत करता है तथा शरीर की थकान दूर करता है। इसके लिए सीधे खड़े हो जाएं ,दोनों हाथों को आगे करते हुए जमीन पर झुकें। हाथों को जमीन पर फैलाएं। इस समय आपका शरीर जमीन के साथ त्रिकोण बनाएगा, जिसका हर कोण 60 डिग्री का होगा। घुटनों को सीधा रखें। एड़ियों को जमीन से थोड़ा उठाकर पंजे पर वजन दें। यह आसन सूर्यनमस्कार का एक आवश्यक भाग है। 

  1. पवनमुक्त आसन / Wind Relieving Pose 
लो बीपी के उपचार

यह आसन रक्त संचार बढ़ाता है। पेट की समस्या में आराम दिलाता है। पेट तथा पीठ की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। इस आसन को करने के लिए सबसे पहले पीठ के बल लेट जाएं।साँस लेते हुए घुटनो को मोड़कर छाती तक लाएं और अपने दोनों हाथों से पैरो को छाती की तरफ दबाएं। सिर को उठाते हुए अपने सिर से घुटने को छूने की कोशिश करें। कुछ सेकंड तक इसी स्थिति में रहें और सांस को अंदर रोक कर रखें। अब धीरे – धीरे साँस छोड़ते हुए पैरों को सीधा करें और पीठ के बल लेटने की अवस्था में आ जाएं। इसका अभ्यास 8 से 10 बार करें। 

  1. शिशु आसन / Child Pose 
लो बीपी के उपचार

यह आसन तनाव और थकान से शरीर को आराम दिलाता है एवं मस्तिष्क को शांत करता है। शिशुआसन में सबसे पहले वज्र आसन की तरह घुटनों को मोड़ते हुए एड़ी पर बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को आगे की ओर फैलाते हुए सिर को जमीन पर टिकाएं। इस अवस्था में छाती घुटनो के पास लगती है। इससे माइग्रेन में भी राहत मिलती है। लो बीपी के उपचार में इस आसान का अच्छा परिणाम देखा गया है। 

  1. सर्वांगासन  / Shoulder stand 

यह आसन मस्तिष्क में रक्त प्रवाह बढ़ाता है। इससे मन शांत होता है तथा चक्कर आने की समस्या दूर होती है। सर्वांगासन करने के लिए जमीन पर पीठ के बल लेट जाएं। अब कंधे के बल अपने पैर और धड़ को सीधा हवा में खड़ा करें। पीठ को अपने दोनों हाथों से सपोर्ट दें। पैरों को सीधा रखने का प्रयास करें। अपने धड़ को ऊपर खींचने और सीधा रखने का प्रयास करें। लम्बी श्वास लें और इस अवस्था में सामर्थ्यानुसार आधा मिनट से एक मिनट रहे। अब धीरे धीरे हाथ को जमीन पर रखते हुए पीठ के बल पूर्वावस्था में लौट जाएं। इससे थायरॉइड रोग भी ठीक होता है। 

  1. मत्स्य आसन / Fish Pose 

यह आसन पीठ और गर्दन की मांसपेशियों में फैलाव लाता है और रक्त संचार बढ़ाता है। इससे लो ब्लड प्रेशर में सुधार आता है। मत्स्यासन करने के लिए पद्मासन में बैठ जाये। इस आसन को करने के लिए वज्रासन में भी बैठ सकते हैं। अब पीठ को धीरे धीरे पीछे की ओर ले जाएं। कोहनियों को जमीन पर टिकाकर धड़ को सहारा दें। अब सिर को जमीन पर टिकाएं। गर्दन और पीठ का ऊपरी भाग जमीन से 5 – 6 इंच ऊपर रहेगा तथा सिर का ऊपरी मध्य भाग जमीन को टच करेगा। इस अवस्था में अपनी क्षमता अनुसार एक मिनट तक रहे। धीरे से पहले पैरों को सीधा करें और पीठ के बल लेट जाएं। पद्मासन और वज्रासन दोनों से यह नहीं हो प् रहा तो पैरों को सीधा रखें। 

जिन्हें लो ब्लड प्रेशर की समस्या रहती है उन्हें ऊपर बताये गए तीन प्राणायाम और 6 योगाभ्यास करनी चाहिए। इससे लो बीपी के उपचार में सकारात्मक परिणाम मिलता है। 

लो बीपी के उपचार में लिया जाने वाला आहार 

लो ब्लड प्रेशर की दवा इसके कारण पर निर्भर करती है। जिस कारण लो बीपी हो रहा है उस कारण को ठीक किया जाता है। लो बीपी में घरेलु उपचार बहुत कारगर है। लो बीपी की समस्या को ठीक करने के लिए शरीर में खून की कमी को पूरा किया जाता है। डिहाइड्रेशन की स्थिति से बचाव किया जाता है और सोडियम की कमी नहीं होने दी जाती है। आइये देखते हैं लो बीपी में लिया जानेवाला आहार –

  1. चाय और कॉफ़ी 

जब रक्त चाप अचानक कम हो जाये तब चाय और कॉफ़ी दोनों ही रक्त चाप को नार्मल करते हैं। 

  1. दालचीनी 

दालचीनी की चाय भी लो बीपी में फायदेमंद है। गरम पानी के साथ दालचीनी पाउडर भी लिया जा सकता है। 

  1. टमाटर 

टमाटर यदि काली मिर्च और सेंधा नमक के साथ खाया जाये तो निम्न रक्तचाप में लाभ मिलता है। 

  1. गाजर ,चुकंदर ,किशमिश ,छुहारा ,खजूर 

गाजर ,चुकंदर ,किशमिश ,छुहारा ,खजूर जैसी रक्त बढ़ाने वाली फ़ूड आइटम लो बीपी  में फायदेमंद होते हैं। इनका नियमित सेवन करना लो ब्लड प्रेसर को नार्मल रखने में मदद करता है। विटामिन B12 और फोलेट युक्त फ़ूड भी लेना चाहिए। 

  1. आंवला 

आंवले का रास या आंवले का मुरब्बा दोनों ही लो बी पी में लेना अच्छा होता है। 

  1. नमक पानी का घोल 

लो बीपी के लक्षण दीखते ही नमक पानी का घोल देना चाहिए। यह घोल बहुत असरकारी होता है। एक गिलास पानी में आधा चम्मच नमक और आधा चम्मच निम्बू का रस मिलाकर पीने से बीपी तुरंत नार्मल हो जाता है 

  1. तुलसी और निम्बू 

8 – 10 तुलसी की पत्तियों को उबालकर चाय बनायी जाये और उसमें पीते समय 4- 5 बूँद निम्बू का रस मिलाकर पिया जाये तो लो बीपी नार्मल होता है। यह हाई बीपी को भी नार्मल करता है। 

  1. मुलैठी और शहद 

मुलैठी की चाय शहद डालकर पीने से लो बीपी को नार्मल लेवल तक लाने में मदद मिलती है। यह चाय हर्बल चाय की तरह प्रतिदिन पिया जा सकता है। इससे लक्षण में सुधार दिखने लगते हैं। 

  1. पानी 

लो बीपी के लक्षण दीखते ही पानी पीना चाहिए। इससे रक्त की मात्रा में वृद्धि होती है और डिहाइड्रेशन भी दूर होता है। इससे भी लो बीपी नार्मल होता है। 

  1. छाछ 

एक गिलास पानी में 2 चम्मच दही और नमक तथा भूना हुआ जीरा डालकर मिलाये। इस तरह छाछ तैयार हो गया। यह भी लो बीपी के लक्षण को दूर करता है। इससे सोडियम और पानी दोनों की कमी पूरी हो जाती है। 

लो ब्लड प्रेशर के लक्षण ,कारण और समस्याएं

किशमिश के फायदे

तुलसी के फायदे

 

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लौ ब्लड प्रेशर के लक्षण ,कारण और घरेलु उपचार

लो ब्लड प्रेशर अर्थात निम्न रक्तचाप का अर्थ है रक्तचाप का सामान्य से कम हो जाना। ऐसे में रक्त मस्तिष्क ,किडनी ,आँखों के पास तथा शरीर के अन्य अंगों में पर्याप्त नहीं पहुँच पाता। इस अवस्था में व्यक्ति को चक्कर आते हैं तथा आँखों के सामने अँधेरा छा जाता है। लो ब्लड प्रेशर भी उतना ही खतरनाक है जितना हाई ब्लड प्रेशर। दोनों तरह की परेशानी उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है। लो बीपी का इलाज इसके कारण पर निर्भर करता है। 

लो ब्लड प्रेशर क्या होता है ? लो ब्लड प्रेशर कितना होता है ?

लो ब्लड प्रेशर का अर्थ है ब्लड प्रेशर का सामान्य से कम हो जाना। लो ब्लड प्रेशर को हाइपोटेंशन भी कहा जाता है। वयस्कों में नार्मल ब्लड प्रेशर 120 / 80 mmHg से 90 / 60 mmHg के बीच रहता है। विशेषज्ञों के अनुसार 90 / 60 mmHg से कम ब्लड प्रेशर लो ब्लड प्रेशर कहलाता है। दोनों में से कोई भी संख्या इससे कम हो तो ब्लड प्रेशर लो कहलाता है। यदि किसी का ब्लड प्रेशर 100 / 55 mmHg है तब भी ब्लड प्रेशर लो कहा जायेगा। 

120 / 80 mmHg ( millimeter of mercury )  में 120 सिस्टोलिक प्रेशर होता है और 80 डायास्टोलिक प्रेशर होता है। सिस्टोलिक प्रेशर वह प्रेशर है जिस प्रेशर में  ह्रदय की मांसपेशियां संकुचित होकर धमनियों में रक्त पंप करती है। डायास्टोलिक प्रेशर तब नोट किया जाता है जब ह्रदय की मांसपेशियां संकुचन के बाद शिथिल हो जाती हैं। ब्लड प्रेशर सही होने से रक्त का संचार सभी अंगो तक ढंग से होता है। ब्लड प्रेशर कम होने पर सभी अंगो तक रक्त प्रॉपर नहीं पहुँच पाता। 

एक व्यक्ति के लिए जितना ब्लड प्रेशर कम है, हो सकता है दूसरे व्यक्ति के लिए वह सामान्य हो। ज्यादातर डॉक्टर ब्लड प्रेशर को लो तब मानते हैं जब लक्षण दिखने लगे। ब्लड प्रेशर में अचानक गिरावट खतरनाक साबित होता है। यदि किसी का सिस्टोलिक प्रेशर 110 से 90 mmHg हो जाये तो ब्रेन तक रक्त कम पहुंचेगा फलस्वरूप व्यक्ति को चक्कर आना तथा बेहोश होना संभव है। 

लो ब्लड प्रेशर के प्रकार / Types of low blood pressure 

पोस्चुरल या ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन / Postural or Orthostatic Hypotension 

इसमें पोस्चर बदलने से रक्तचाप कम होता है। यदि कोई लेटा हुआ हो या बैठा हुआ हो और अचानक खड़ा हो जाये तो ब्लड प्रेशर कम हो जाता है। यह नार्मल है। ऐसे में चक्कर आना संभव है। 

पोस्टप्रानडियल  हाइपोटेंशन / Postprandial Hypotension 

भोजन करने के बाद पाचन के लिए रक्त की आवश्यकता होती है। ऐसे में रक्त का बहाव आंत की तरफ ज्यादा होने लगता है तथा शरीर के अन्य अंगों को रक्त कम पहुँच पाता है। ऐसी स्थिति में रक्तचाप में कमी आती है। 

न्यूरली मेडिएटेड हाइपोटेंशन / Neurally Mediated Hypotension 

यह तब होता है जब व्यक्ति लम्बे समय से खड़ा हो। कोई ऐसी बात जिससे व्यक्ति इमोशनली परेशान हो जाए तब भी ब्लड प्रेशर लो हो सकता है। 

सीवियर हाइपोटेंशन / Severe Hypotension

इसमें अचानक रक्तचाप कम हो जाता है शॉक लगने से ,कोई गंभीर इन्फेक्शन होने से ,डिहाइड्रेशन के कारण ,दिल का दौड़ा पड़ने से ,गंभीर चोट के कारण रक्त की कमी होने से इत्यादि। इसमें जान का खतरा रहता है। इसमें रक्त का बहाव बुरी तरह प्रभावित होता है जिससे मस्तिष्क तक रक्त को पहुँचाना मुश्किल होता है। 

लो ब्लड प्रेशर के लक्षण /लो बी पी के लक्षण / Low Blood Pressure Symptoms in Hindi 

  • चक्कर आना 
  • धुंधला दिखना या आँखों के आगे अँधेरा छाना 
  • उलझन में रहना
  •  थकान होना 
  • कमजोरी महसूस होना 
  • जी मिचलाना 
  • शरीर का ठंढा होना 
  • साँस लेने में दिक्कत होना 
  • एकाग्रता में कमी होना 
  • त्वचा में पीलापन होना 
  • प्यास ज्यादा लगना 
  • अनियमित धड़कन तथा छाती में दर्द रहना 
  • गर्दन का अकड़ना 
  • पल्स रेट का कम होना 

लो ब्लड प्रेशर के कारण / लो बीपी के कारण / Causes of low BP in Hindi 

कभी – कभी लो ब्लड प्रेशर का कारण पता नहीं चल पाता। कुछ लोगों में ब्लड प्रेशर लो होते देखा गया है जब वह गुस्से में होते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि 10 में से 2 लोगों का क्रोध के दौरान बीपी लो हो जाता है। कुछ परिस्थितियाँ हैं जिसमें ब्लड प्रेशर लो रह सकता है –

  • डिहाइड्रेशन जिससे रक्त की मात्रा कम हो जाती है 
  • अंदरूनी रक्तश्राव / internal bleeding 
  • कोई भी ऐसी चोट जिससे रक्त ज्यादा निकल गया हो 
  • गर्भावस्था 
  • हाई बीपी की दवा 
  • डिप्रेशन में ली जानेवाली दवायें ,दर्दनिवारक दवा ,वियाग्रा जैसी यौन क्षमता बढ़ाने वाली दवा 
  • एलर्जी 
  • रक्त सम्बन्धी संक्रमण 
  • हीमोग्लोबिन का कम रहना 
  • हमेशा एसिडिटी रहना 
  • नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर 
  • डायबिटीज ,थाइरोइड ,पार्किसंस में भी लो ब्लड प्रेशर संभव है 

लो ब्लड प्रेशर से बचने के उपाय / Prevention from low blood pressure 

यदि किसी का ब्लड प्रेशर लो रहता है तो उन्हें निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए। इससे इसके खतरे से बचा जा सकता है। 

  • बीपी लो रहने की समस्या है तो झटके से खड़े ना हो। धीरे धीरे पोस्चर में बदलाव लाएं 
  • पानी की कमी शरीर में नहीं होने दें 
  • तनाव और क्रोध से बचें 
  • हैवी डाइट लेने से बचे और कार्ब्स की मात्रा भी कम कर दें। हैवी डाइट लेने से पाचन तंत्र की तरफ रक्त प्रवाह तेज़ी से होता है ,फलस्वरूप शरीर के अन्य हिस्सों में रक्त प्रवाह की गति धीमी हो जाती है। 
  • हीमोग्लोबिन की कमी नहीं होने दें। इसके लिए फल ,सब्जी ,ड्राई  फ्रूट्स इत्यादि का सेवन करें 
  • उपवास से बचें ,ज्यादा देर तक भूखे नहीं रहे 
  • पर्याप्त नींद लें क्योंकि नींद पूरी नहीं होने से भी बीपी लो होता है 
  • ज्यादा देर तक खड़े ना रहे 
  • शराब का सेवन नहीं करें 
  • दवाब वाले मोज़े / स्टॉकिंग्स पहनें ताकि पैरों में रक्त इकट्ठा नहीं हो 
  • प्रतिदिन एक्सरसाइज करने की आदत डालनी चाहिए। इससे ब्लड प्रेशर को नार्मल रखने में मदद मिलती है
  • खाने में नमक की मात्रा थोड़ा बढ़ाना चाहिए। 

लो बीपी के कारण होनेवाली समस्याएं और जटिलताएं / Low blood pressure complication 

  • लो बीपी का असर हार्ट और किडनी पर बहुत ज्यादा होता है। 
  • लो बीपी नर्वस सिस्टम और ब्रेन को भी डैमेज कर सकता है 
  • गर्भावस्था के दौरान लो बीपी का ध्यान नहीं रखा गया तो स्टिल बर्थ ( गर्भ में शिशु की मृत्यु ) की सम्भावना रहती है 
  • चक्कर आकर कहीं भी गिर जाते हैं तो गंभीर चोट लग सकती है 
  • स्ट्रोक ,किडनी फेलियर ,डेमेंशिया ,ब्रेन डिसऑर्डर की सम्भावना रहती है 
  • लो ब्लड प्रेशर के कारण शॉक(सदमा पहुंचना ) भी लग सकता है। शॉक लगने से कई ऑर्गन बुरी तरह डैमेज भी हो सकते हैं। 

 लो ब्लड प्रेशर के घरेलु उपचार / Home remedies for low blood pressure 

लो ब्लड प्रेशर की दवा इसके कारण पर निर्भर करती है। जिस कारण लो बीपी हो रहा है उस कारण को ठीक किया जाता है। लो बीपी में घरेलु उपचार बहुत कारगर है –

  1. चाय और कॉफ़ी 

जब रक्त चाप अचानक कम हो जाये तब चाय और कॉफ़ी दोनों ही रक्त चाप को नार्मल करते हैं। 

  1. दालचीनी 

दालचीनी की चाय भी लो बीपी में फायदेमंद है। गरम पानी के साथ दालचीनी पाउडर भी लिया जा सकता है। 

  1. टमाटर 

टमाटर यदि काली मिर्च और सेंधा नमक के साथ खाया जाये तो निम्न रक्तचाप में लाभ मिलता है। 

  1. गाजर ,चुकंदर ,किशमिश ,छुहारा ,खजूर 

गाजर ,चुकंदर ,किशमिश ,छुहारा ,खजूर जैसी रक्त बढ़ाने वाली फ़ूड आइटम लो बीपी  में फायदेमंद होते हैं। इनका नियमित सेवन करना लो ब्लड प्रेसर को नार्मल रखने में मदद करता है। विटामिन B12 और फोलेट युक्त फ़ूड भी लेना चाहिए। 

  1. आंवला 

आंवले का रास या आंवले का मुरब्बा दोनों ही लो बी पी में लेना अच्छा होता है। 

  1. नमक पानी का घोल 

लो बीपी के लक्षण दीखते ही नमक पानी का घोल देना चाहिए। यह घोल बहुत असरकारी होता है। एक गिलास पानी में आधा चम्मच नमक और आधा चम्मच निम्बू का रस मिलाकर पीने से बीपी तुरंत नार्मल हो जाता है 

  1. तुलसी और निम्बू 

8 – 10 तुलसी की पत्तियों को उबालकर चाय बनायी जाये और उसमें पीते समय 4- 5 बूँद निम्बू का रस मिलाकर पिया जाये तो लो बीपी नार्मल होता है। यह हाई बीपी को भी नार्मल करता है। 

  1. मुलैठी और शहद 

मुलैठी की चाय शहद डालकर पीने से लो बीपी को नार्मल लेवल तक लाने में मदद मिलती है। यह चाय हर्बल चाय की तरह प्रतिदिन पिया जा सकता है। इससे लक्षण में सुधार दिखने लगते हैं। 

  1. पानी 

लो बीपी के लक्षण दीखते ही पानी पीना चाहिए। इससे रक्त की मात्रा में वृद्धि होती है और डिहाइड्रेशन भी दूर होता है। इससे भी लो बीपी नार्मल होता है।

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डायबिटीज में भोजन कितनी बार करनी चाहिए ? https://healthysansaar.in/%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%af%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%9c-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%ad%e0%a5%8b%e0%a4%9c%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%ac/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25a1%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25af%25e0%25a4%25ac%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%259f%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%259c-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%25ad%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25a8%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%25ac https://healthysansaar.in/%e0%a4%a1%e0%a4%be%e0%a4%af%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%80%e0%a4%9c-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%ad%e0%a5%8b%e0%a4%9c%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%ac/#comments Fri, 02 Jul 2021 10:03:18 +0000 https://healthysansaar.in/?p=1166 शुगर को नियंत्रण में रखने के लिए डायबिटीज में भोजन कितनी बार करनी चाहिए। यह प्रश्न हर डायबिटीज पेशेंट के मन में रहता है। अक्सर डॉक्टर सलाह देते हैं कि डायबिटीज में भोजन 6 बार करनी चाहिए। अपने भोजन को 6 छोटे भाग में बांटकर लेना अच्छा होता है। लेकिन Read more…

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शुगर को नियंत्रण में रखने के लिए डायबिटीज में भोजन कितनी बार करनी चाहिए। यह प्रश्न हर डायबिटीज पेशेंट के मन में रहता है। अक्सर डॉक्टर सलाह देते हैं कि डायबिटीज में भोजन 6 बार करनी चाहिए। अपने भोजन को 6 छोटे भाग में बांटकर लेना अच्छा होता है। लेकिन एक शोध में यह भी सामने आया कि डायबिटिक पेशेंट तीन बार भोजन करते हैं तो उनका इन्सुलिन फंक्शन ज्यादा अच्छा रहता है। इस लेख में हम दोनों तरह के मील प्लान के विषय में जानेंगे। 

डायबिटीज में भोजन 3 बार या 6 बार

1 . इजरायल की तेल अवीव यूनिवर्सिटी की शोध के अनुसार 

डायबिटीज एक्सपर्ट डायबिटीज में भोजन को 6 भाग में बांटकर लेने की सलाह देते हैं। उनके अनुसार टाइप – 2 डायबिटीज में रोगी को एक नियमित अंतराल पर भोजन लेना चाहिए। एक दिन में भोजन को 6 भाग में बांटकर लेने से शुगर का लेवल बहुत ऊपर या बहुत नीचे नहीं जा पाता। 

लेकिन इजरायल की तेल अवीव यूनिवर्सिटी की शोध के अनुसार डायबिटीज में भोजन को 6 भाग में बांटकर लेना  गलत है। इससे मरीज को कई तरह की परेशानी हो सकती है। यह उन मरीजों के लिए ज्यादा खतरनाक है जो शुगर को नियंत्रण में रखने के लिए इन्सुलिन लेते हैं। जो डायबिटिक पेशेंट इन्सुलिन ले रहे हैं और दिन में 6 मील लेते हैं उनको और गहन चिकित्सा की जरुरत पड़ती है। आगे पढ़ते हैं कि उनके अनुसार डायबिटीज में भोजन कितनी बार करनी चाहिए। 

शोधकर्ताओं के अनुसार यदि भोजन शरीर की जैविक घड़ी (biological clock ) के अनुसार की जाये तब शरीर अपने कार्य को बेहतर ढंग से संचालित करता है। ऐसे में व्यक्ति के इन्सुलिन की जरुरत में कमी आ सकती है। जैविक घड़ी के अनुसार व्यक्ति को दिन में तीन बार भोजन करनी चाहिए। इससे वजन कम होगा और रक्त में शर्करा का स्तर भी ठीक होगा। 

और पढ़ें : डायबिटीज में वजन कैसे बढ़ाएं

डायबिटीज में खाये जाने वाले ड्राई फ्रूट्स

डायबिटीज में खाये जाने वाले अनाज

प्रोफेसर डैनिएला जैकुबोविच ( Prof Daniela Jakubowicz ) का कहना है कि डायबिटीज रोगियों के लिए पारम्परिक आहार को 6 छोटे हिस्सों में बांटा जाता है। लेकिन यह आहार का तरीका ग्लूकोज लेवल को नियंत्रण में रखने में प्रभावशाली नहीं है। इस मील प्लान से डायबिटीज पेशेंट को अधिक इलाज और अधिक इन्सुलिन की जरुरत पड़ती है। जितनी बार वो खाते हैं ,इन्सुलिन लेते हैं। इन्सुलिन ज्यादा लेने से वजन बढ़ता है और ब्लड ग्लूकोज लेवल में भी बढ़ोतरी होती है। उन्होंने एक अध्ययन किया और दिखाया कि किस तरह डायबिटीज में  भोजन 3 बार ली जाए तो ज्यादा फायदा होता है। 

उनके शोध के अनुसार स्टार्च से भरपूर आहार दिन की शुरुआत में लेनी चाहिए। इससे ग्लूकोज का स्तर संतुलन में रहता है और ग्लाइसेमिक नियंत्रण भी बेहतर होता है। 

Prof.Daniela Jakubowicz

“We believe that through this regimen , it will be possible for people with diabetes to significantly reduce or even stop the injections of Insulin and most antidiabetic medications , to achieve excellent control of glucose level .”

शोधकर्ताओं ने टाइप – 2 डायबिटीज से पीड़ित 28 लोगों पर अध्ययन किया। एक समूह को दिन में 6 बार भोजन दिया गया और दूसरे समूह को दिन में 3 बार। तीन बार भोजन करने वाले समूह को कहा गया कि वे सुबह के आहार में ज्यादा कार्ब्स ,मीठा और फल लें। दिन में पर्याप्त भोजन करें और शाम के भोजन में कार्ब्स ,फल तथा मीठी चीज़ें नहीं लें। इस शोध से पहले प्रतिभागी के वजन ,भूख ,शुगर लेवल इत्यादि की जाँच की गयी। फिर दो हफ्ते बाद और 12 हफ्ते के बाद भी जाँच की गयी। 

शोधकर्ताओं ने पाया कि डायबिटीज में भोजन जो 6 बार ले रहे थे उनके वजन में कमी नहीं आयी और उनके शुगर लेवल में भी सुधार नहीं आया। जबकि जो प्रतिभागी डायबिटीज में भोजन 3 बार ले रहे थे उनका वजन कम हुआ और शुगर लेवल में काफी सुधार आया। जो प्रतिभागी इन्सुलिन पर थे उनका इन्सुलिन डोज बहुत कम हो चुका था। यहाँ तक कि कुछ लोगों को अब इन्सुलिन लेने की जरुरत नहीं थी। साथ ही उनके biological clock gene के expression में भी सुधार आया था। इससे यह पता चलता है कि डायबिटीज में भोजन 3 बार किया जाये तो केवल डायबिटीज में ही नहीं बल्कि ह्रदय रोग ,समय से पहले एजिंग और कैंसर में भी फायदा होता है। क्योंकि ये सभी रोग बायोलॉजिकल क्लॉक जींस द्वारा रेगुलेटेड होते हैं। 

2. डायबिटीज एंड मेटाबोलिज्म जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार –

इस शोध के अनुसार डायबिटीज में भोजन एक दिन में  6 बार करनी चाहिए। यह नतीजा 47 वयस्कों पर किये गए एक अध्ययन के आधार पर सामने आया। इन 47 लोगों को जो डायबिटीज या प्रीडायबिटीज के मरीज थे ,तीन समूहों में बांटा गया। दो समूहों में प्रीडायबिटिक और तीसरे समूह में डायबिटिक रोगी थे। सभी समूह के लोगों को 12 सप्ताह तक एक दिन में 3 से लेकर 6 बार भोजन करना था। उन्हें उच्च कैलोरी वाले भोजन लेने थे। 12 सप्ताह के बाद उनके डाइट प्लान में बदलाव किया गया। 24 सप्ताह के बाद यह देखा गया कि जो लोगो थोड़ी थोड़ी अंतराल पर कम कम भोजन कर रहे थे ,उनका शुगर लेवल आसानी से कण्ट्रोल हो रहा था। 

दिन में 6 बार कम – कम  भोजन करने के फायदे और नुकसान 

इस तरह से भोजन किया जाये तो ब्लड शुगर का लेवल स्थिर रहता है। ऐसे भोजन करने से ब्लड शुगर का लेवल अचानक से नहीं बढ़ता। वजन कम नहीं होता और ऊर्जा पूरे दिन बनी रहती है। लेकिन डायबिटीज में जिनका वजन बढ़ा हुआ हो उनका वजन इस डाइट प्लान से कम नहीं होता। जो पेशेंट इन्सुलिन ले रहे हैं उनके लिए भी यह अच्छा विकल्प नहीं है। बार – बार इन्सुलिन लेने से शरीर में इन्सुलिन की मात्रा बढ़ा जाएगी और मोटापा भी बढ़ने लगेगा। 

Conclusion ( निष्कर्ष )

 यदि डायबिटिक पेशेंट इन्सुलिन ले रहे हैं और उनका वजन भी बढ़ा हुआ है तो उन्हें दिन में तीन बार ही भोजन करना चाहिए। भोजन में कार्ब्स की मात्रा सबसे ज्यादा सुबह लें तथा रात के भोजन में कार्ब्स नहीं के बराबर लें। इससे व्यक्ति का बायोलॉजिकल क्लॉक प्रभावित नहीं होता है तथा इससे कम इन्सुलिन की जरुरत पड़ती है। 

यदि व्यक्ति टाइप – 2 डायबिटीज का पेशेंट है और वजन भी कम हो रहा है तो उन्हें 6 छोटे छोटे मील पूरे दिन में लेने चाहिए। इससे वजन कम नहीं होता और शुगर को नियंत्रण में रखना आसान होता है। इस मील प्लान में कार्ब्स को कम मात्रा में और छोटे – छोटे भागों में बांटकर लेनी होती है।

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Insulin Resistance क्या है ?लक्षण ,कारण ,उपचार जानें / Insulin Resistance in Hindi https://healthysansaar.in/insulin-resistance-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%b2%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%a3-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a3/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=insulin-resistance-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25af%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2588-%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b7%25e0%25a4%25a3-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25a3 https://healthysansaar.in/insulin-resistance-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%b2%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%a3-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a3/#respond Thu, 24 Jun 2021 06:50:43 +0000 https://healthysansaar.in/?p=1153 Insulin Resistance क्या है ? यह प्रश्न बहुत लोगों के मन में होगा। डायबिटीज में जितना जरुरी ग्लाइसेमिक इंडेक्स और ग्लाइसेमिक लोड के विषय में जानना है ,उतना ही जरूरी इन्सुलिन रेजिस्टेंस के विषय में भी जानना है। टाइप – 2 डायबिटीज का दूसरा नाम इन्सुलिन रेसिस्टेन्स कहा जाये तो Read more…

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Insulin Resistance क्या है ? यह प्रश्न बहुत लोगों के मन में होगा। डायबिटीज में जितना जरुरी ग्लाइसेमिक इंडेक्स और ग्लाइसेमिक लोड के विषय में जानना है ,उतना ही जरूरी इन्सुलिन रेजिस्टेंस के विषय में भी जानना है। टाइप – 2 डायबिटीज का दूसरा नाम इन्सुलिन रेसिस्टेन्स कहा जाये तो गलत नहीं होगा। पहले इन्सुलिन रेसिस्टेन्स होता है ,उसके बाद जीवन शैली में बदलाव नहीं किया गया तो टाइप – 2 डायबिटीज हो जाता है। इन्सुलिन रेसिस्टेन्स से डायबिटीज का पता  बहुत पहले लगाया जा सकता है। कितना समय  पहले डायबिटीज का पता लगाया जा सकता है ,यह निर्भर करता है व्यक्ति की दिनचर्या और खान पान पर। यह समय 5 वर्ष ,10 वर्ष या 6 महीना भी हो सकता है। इस लेख में हमलोग जानेंगे कि Insulin Resistance क्या है ? इसका पता कैसे लगाएं ?इन्सुलिन रेजिस्टेंस के लिए टेस्ट कौन से हैं ? इसके लक्षण क्या हैं? इन्सुलिन रेसिस्टेन्स ठीक कैसे करें ?

इन्सुलिन रेसिस्टेन्स क्या होता है

और पढ़ें :

ग्लाइसेमिक इंडेक्स और ग्लाइसेमिक लोड क्या है ? ग्लाइसेमिक लोड चार्ट डाउनलोड करें। 

Insulin Resistance क्या है ? What is Insulin Resistance ?

Insulin Resistance एक ऐसी स्थिति है जिसमें मांसपेशियों ,फैट और लिवर में मौजूद कोशिकाएं इन्सुलिन के प्रति सही तरीके से प्रतिक्रिया नहीं देती। जिससे रक्त में ग्लूकोज़ का लेवल बढ़ने लगता है। इस स्थिति में इन्सुलिन का लेवल भी रक्त में बढ़ जाता है। 

Insulin Resistance को साधारण शब्दों में समझा जाये तो इसका /अर्थ है -इन्सुलिन को उसका काम करने से रोकना। इन्सुलिन के काम में रेजिस्टेंस / प्रतिरोध /बाधा डालना। इन्सुलिन ग्लूकोज को सेल/ कोशिकाओं में पहुँचाने के लिए एक कैरियर का काम करता है। लेकिन ऐसी स्थिति आ जाती है कि कोशिकाएं इन्सुलिन को अपने अंदर आने नहीं देती। ऐसे में इन्सुलिन और ग्लूकोज दोनों ब्लड में ही रह जाते हैं।

Insulin Resistance क्या है,  इसे एक वाक्य में कहा जाए तो इसका अर्थ है – कोशिकाओं का इन्सुलिन के प्रति संवेदनशीलता का कम होना इन्सुलिन रेजिस्टेंस कहलाता है। 

Insulin sensitivity / इन्सुलिन संवेदनशीलता से तात्पर्य है इन्सुलिन के प्रति कोशिकाओं की प्रतिक्रिया। इन्सुलिन ब्लड में है ,ग्लूकोज भी है लेकिन कोशिकाएं रिस्पांस नहीं कर रही कि इन्सुलिन ग्लूकोज लेकर कोशिका में प्रवेश करे। अर्थात अब कोशिका के नजर में इन्सुलिन का पहले जैसा वैल्यू नहीं रहा। इन्सुलिन संवेदनशीलता कम हो चुकी है। यह हमारे शरीर के लिए सही नहीं है। इन्सुलिन संवेदनशीलता कम होने से इन्सुलिन रेसिस्टेन्स बढ़ जाता है। डायबिटीज में शुरुआत में जो मेडिसिन दी जाती है मेटफोर्मिन / metformin वो इन्सुलिन सेंसिटिविटी को बढ़ाने के लिए ही दी जाती है। 

Insulin क्या है ? इन्सुलिन क्या है ? What is Insulin ?

इन्सुलिन एक हार्मोन है ,जिसका निर्माण पैंक्रियास में बीटा सेल के द्वारा होता है। यह ग्लूकोज को रक्त से कोशिकाओं में पहुँचाने का काम करता है। यह लिवर ,मांसपेशियों और फैट में ग्लूकोज को स्टोर करने का भी काम करता है। यदि इन्सुलिन सही तरीके से काम नहीं करे तो हमारा शरीर , मसल्स और लिवर में ग्लूकोज स्टोर नहीं कर सकता ,यहाँ तक कि फैट भी नहीं बना सकता। ऐसे में फैट टूट जाता है और अन्य चीजों के साथ कीटो एसिड भी उत्पन्न करता है। यदि यह एसिड ज्यादा बढ़ गया तो डायबिटिक केटोएसिड्स की स्थिति पैदा हो जाती है। इस कंडीशन में पेशेंट को हॉस्पिटल में एडमिट करना होता है और इन्सुलिन दिया जाता है। उम्मीद है इन्सुलिन का महत्व समझ गए होंगे। 

यदि ब्लड में ग्लूकोज का लेवल बढ़ जाता है तो पैंक्रियास बीटा सेल को ट्रिगर करता है अधिक इन्सुलिन के उत्पादन के लिए। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक कि पैंक्रियास इन्सुलिन बनाने के योग्य रहता है। एक समय ऐसा आता है जब पैंक्रियास के द्वारा इन्सुलिन का उत्पादन कम होने लगता है। ऐसे में रक्त में ग्लूकोज का लेवल बढ़ता चला जाता है। ऐसी स्थिति में इन्सुलिन लेने की जरुरत पड़ती है। 

 यदि ब्लड में ग्लूकोज का लेवल भी बढ़ जाए और इन्सुलिन का लेवल भी बढ़ जाये तो insulin resistance की स्थिति पैदा हो जाती है। 

इन्सुलिन टेस्ट क्या होता है ? इन्सुलिन का पता कैसे लगाए ?

इन्सुलिन का पता लगाने के लिए दो टेस्ट किये जाते हैं। डॉक्टर को इन्सुलिन रेसिस्टेन्स की आशंका होती है तो वे इनमें से कोई भी एक टेस्ट करवा कर देखते हैं।

  1. C -Peptide test 

फास्टिंग में ब्लड का सैंपल लेकर सी पेप्टाइड टेस्ट किया जाता है। c -peptide इन्सुलिन के साथ ही रिलीज़ होता है। इस टेस्ट से ब्लड में इन्सुलिन का लेवल पता चल जाता है। डॉक्टर इसी टेस्ट से पता करते हैं कि डायबिटीज टाइप 1 है या टाइप 2 . इससे इन्सुलिन रेसिस्टेन्स का भी पता लगाया जा सकता है। 

C – Peptide का नार्मल रेंज             0 . 51    –   2 . 72 ng /ml  होता है | 

यदि पैंक्रियास इन्सुलिन कम बना रहा है तो रिजल्ट 0 . 51 से कम आएगा। यह स्थिति टाइप -1 डायबिटीज की तरफ इशारा करती है। 

यदि पैंक्रियास इन्सुलिन ज्यादा बना रहा है तो रिजल्ट 2 . 72 से ज्यादा आएगा। यह स्थिति इन्सुलिन रेजिस्टेंस बताती है। उम्मीद है अभी तक Insulin Resistance क्या है ,समझ गए होंगे। 

  1. Fasting Insulin Test 

फास्टिंग ग्लूकोज टेस्ट की तरह फास्टिंग इन्सुलिन का भी टेस्ट करवाया जाता है। इससे रक्त में इन्सुलिन का लेवल पता चलता है। इसमें नार्मल रेंज होता है –

    2 . 6  –  24 . 9 mcIU /ml 

HOMA – IR ( Homeostatic Model Assessment of Insulin Resistance )

इन्सुलिन रेजिस्टेंस पता करने का सबसे आसान तरीका। इससे हमलोग खुद अपना इन्सुलिन रेसिस्टेन्स निकाल सकते हैं। इसके लिए दो वैल्यू चाहिए फास्टिंग इन्सुलिन और फास्टिंग ग्लूकोज। जब ग्लूकोज टेस्ट करवायें तब फास्टिंग इन्सुलिन भी टेस्ट करवा लें। 

HOMA – IR के अनुसार 

insulin resistance =    fasting glucose x fasting insulin / 405

इसके रिजल्ट के आधार पर इन्सुलिन रेसिस्टेन्स की तीन केटेगरी है। 

  1. No Insulin Resistance – यदि इन्सुलिन रेसिस्टेन्स 1 से कम है।  

1 से 1 . 9 तक की वैल्यू को भी नार्मल इन्सुलिन रेसिस्टेन्स  माना जाता है 

  1. Moderate Insulin Resistance – यदि वैल्यू 1 . 9 से 2 . 9  आता है तब इन्सुलिन प्रतिरोध /इन्सुलिन रेसिस्टेन्स मॉडरेट है। 
  2. Severe Insulin  Resistance – यदि वैल्यू 2 . 9 से ज्यादा आती है। 

उदाहरण से समझते हैं – 

पेशेंट A 

फास्टिंग ग्लूकोज : 90 mg /dl 

फास्टिंग इन्सुलिन : 4 mcIU /ml 

Insulin Resistance = 90 x 4 /405 = 0.88 

पेशेंट B 

फास्टिंग ग्लूकोज : 82 mg / dl 

फास्टिंग इन्सुलिन : 14  mcIU /ml 

 Insulin Resistance = 80 x 14  / 405 = 2.83 

पेशेंट C 

फास्टिंग ग्लूकोज़ :104  mg /dl 

फास्टिंग इन्सुलिन :10   mcIU /ml 

Insulin Resistance = 104 x 10 / 405  = 2.5  

उदाहरण में हमने देखा कि ग्लूकोज का लेवल सबसे कम पेशेंट B में है ,लेकिन इन्सुलिन का लेवल सबसे ज्यादा B में होने के कारण इन्सुलिन रेसिस्टेन्स भी उसीका ज्यादा है। इस उदाहरण से पता चल रहा है कि डायबिटीज का खतरा सबसे ज्यादा पेशेंट B को है। 

पेशेंट C में ग्लूकोज लेवल ज्यादा है लेकिन इन्सुलिन सेंसिटिविटी सही होने के कारण इन्सुलिन की मात्रा कम है। इन्सुलिन रेसिस्टेन्स नार्मल है। 

हालाँकि वैज्ञानिको ने इस मेथड को सराहा ,पर इसमें भी कुछ कमियां है। वैज्ञानिको के अनुसार इसे और विस्तार से बताने तथा कमियों को दूर करने की जरुरत है। फिर भी खुद घर पर अपना इन्सुलिन प्रतिरोध जांच करने का यह एक अच्छा तरीका है। एक वैल्यू हमारे सामने आती है और हम किस केटेगरी में है देख सकते हैं। 

Insulin Resistance क्या है समझने के बाद इन्सुलिन रेसिस्टेन्स के लक्षण देखते हैं –

 Insulin Resistance क्या है ? यह हम जान चुके हैं। अब देखते हैं कि शरीर में ऐसे क्या परिवर्तन आते हैं जिससे इन्सुलिन रेसिस्टेन्स का पता चलता है। 

वजन बढ़ना 

यदि आप का वजन बढ़ रहा है तो यह इन्सुलिन प्रतिरोध की ओर संकेत करता है | पुरुषों में उनके कमर की नाप 40 इंच या उससे अधिक हो जाये और महिलाओं में उनके कमर की नाप 35 इंच या उससे अधिक हो जाये तो इन्सुलिन प्रतिरोध की जाँच करवाए | इन्सुलिन प्रतिरोध के बढ़ने से टाइप – 2 डायबिटीज की सम्भावना होती है | 

और पढ़ें ; डायबिटीज में वजन कैसे बढ़ाये

थकान 

यदि मेटाबोलिज्म प्रभावित हो चुका है तो सही भोजन लेने के  बावजूद थकान महसूस होगी। यह भी इन्सुलिन प्रतिरोध की ओर संकेत करता है | 

ब्लड प्रेशर रीडिंग 

यदि ब्लड प्रेशर की रीडिंग 130/85 से ऊपर आ रहा है तो यह भी इन्सुलिन रेसिस्टेन्स के प्रति संकेत दे रहा है |

ट्राइग्लिसराइड लेवल

फास्टिंग ट्राइग्लिसराइड का लेवल 150 mg /dl से ज्यादा आना भी इन्सुलिन प्रतिरोध की ओर संकेत करता है | 

फास्टिंग ग्लूकोज लेवल 

फास्टिंग ग्लूकोज का लेवल 100 mg /dl से ऊपर हो तो यह इन्सुलिन रेसिस्टेन्स का लक्षण हो सकता है | 

HDL का लेवल 

इन्सुलिन प्रतिरोध की समस्या तब भी संभव है जब गुड कोलेस्ट्रॉल HDL का लेवल पुरुषों में 40 mg /dl और महिलाओं में 50 mg /dl से कम हो | 

बार – बार पेशाब आना 

यदि रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य है फिर भी प्यास बहुत लग रही है और बार बार पेशाब जाना पड़ रहा है तो यह इन्सुलिन प्रतिरोध के बढ़ने का लक्षण दिखा रहा है | 

त्वचा का काला पड़ना 

यदि गर्दन ,अंडर आर्म या आर्मपिट और कमर के चारो ओर काले रंग के पैच है तो यह इन्सुलिन प्रतिरोध के कारण है | 

बाल झड़ना और मुहांसे होना 

यदि सामान्य से ज्यादा बाल झड़ रहे हैं और मुहांसो की समस्या हो रही है तो यह भी इन्सुलिन रेसिस्टेन्स का एक लक्षण हो सकता है | 

इन्सुलिन प्रतिरोध का कारण / इन्सुलिन रेसिस्टेंस का कारण 

 Insulin Resistance क्या है , इसके लक्षण क्या हैं , जानने के बाद हमे यह जानना चाहिए कि ऐसा हमने क्या किया या और क्या कारण है कि इन्सुलिन प्रतिरोध की स्थिति पैदा हो गयी। 

अधिक कैलोरीज़ का सेवन 

अधिक मात्रा में कैलोरीज लेने से और शरीर में बॉडी फैट की अधिकता के कारण रक्त में फ्री फैटी एसिड की मात्रा अधिक हो जाती है। रक्त में फ्री फैटी एसिड की अधिकता के कारण कोशिकाएं इन्सुलिन के प्रति सही तरीके से प्रतिक्रिया देना बंद कर देती है | 

मोटापा 

पेट और आस पास के अंगों में जमनेवाली चर्बी की वजह से भी ब्लड में फ्री फैटी एसिड और इंफ्लेमेटरी हार्मोन रिलीज़ होने लगते हैं | जिसकी वजह से इन्सुलिन प्रतिरोध की समस्या होती है | 

स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं 

यदि फैटी लिवर है या पॉली सिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) है तो इन्सुलिन प्रतिरोध का खतरा रहता है | यह भी कह सकते है कि यदि इन्सुलिन रेसिस्टेन्स है तो PCOS और फैटी लिवर होने की सम्भावना होती है | यह समस्या एक दूसरे का कारण बनते हैं | 

आनुवंशिक 

यदि परिवार में किसी को डायबिटीज की समस्या हो तो इन्सुलिन प्रतिरोध की समस्या होती है। जो आगे चलकर डायबिटीज में बदल जाता है | 

असक्रिय जीवन शैली 

किसी भी प्रकार की फिजिकल एक्टिविटी नहीं करना अर्थात किसी भी तरह से कैलोरी नहीं जलाना , इन्सुलिन रेसिस्टेन्स की समस्या उत्पन्न करता है | 

इन्फ्लामेशन 

यदि शरीर में किसी भी प्रकार का इंफ्लामेशन हो और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ा हुआ हो अर्थात फ्री रेडिकल्स की संख्या ज्यादा हो गयी हो तो इन्सुलिन प्रतिरोध की सम्भावना पूरी होती है | 

उम्र सम्बन्धी कारक 

उम्र बढ़ने के साथ साथ इन्सुलिन प्रतिरोध का बढ़ना सामान्य है | 

मीठे का सेवन 

यदि ज्यादा चीनी का सेवन किया जाये तो भी इन्सुलिन प्रतिरोध बढ़ता है। यदि यही फ्रुक्टोज़ फलों से प्राप्त हो तो यह समस्या नहीं होती | 

नींद की कमी 

यदि नींद पूरी नहीं करते हैं और ऐसा लम्बे समय तक चलता रहता है तो इन्सुलिन प्रतिरोध की समस्या उत्पन्न हो जाती है | 

दवाइयों का सेवन 

अल्कोहल ,स्टेरॉइड्स ,अन्य दवाइयाँ  जो HIV तथा अवसाद में दिए जाते हैं वो भी इन्सुलिन प्रतिरोध का कारण बनते हैं |  

आंत से जुडी बैक्टीरिया 

आंत में कुछ ऐसी बैक्टीरिया होती हैं जिनकी बढ़ती या घटती संख्या ,इन्सुलिन रेसिस्टेन्स का कारण बनती हैं

Insulin Resistance क्या है समझने के बाद इन्सुलिन रेसिस्टेन्स का उपचार जानते हैं

 Insulin Resistance क्या है , इसके लक्षण और कारण क्या है, हम  जान चुके हैं। अब हमे इसे सामान्य करना है ताकि डायबिटीज से बच सकें। इन्सुलिन रेसिस्टेन्स को कम करने के लिए जीवनशैली में बदलाव करना आवश्यक है। निम्न प्रकार से आप अपना इन्सुलिन प्रतिरोध कम कर सकते हैं। 

व्यायाम 

फिजिकल एक्टिविटी को बढाकर ,नियमित व्यायाम ,योगा और सैर करके इन्सुलिन प्रतिरोध को कम कर सकते हैं | 

पेट की चर्बी कम करें  

व्यायाम तथा खान – पान में बदलाव कर के पेट की चर्बी को कम करना आवश्यक है | पेट की चर्बी कम होने से रक्त में फ्री फैटी एसिड भी कम होगा और इन्सुलिन प्रतिरोध पर इसका सीधा असर होगा |

कैलोरी कम लें 

अपने आहार में कार्बोहायड्रेट कम करें ,चीनी का सेवन बिलकुल कम कर दें | रोटी ,चावल ,दाल ,आलू जैसी चीज़ें जिनसे ग्लूकोज मिलता है , उन्हें कम करें | 

संतुलित आहार लें 

अपने आहार में ड्राई फ्रूट्स ,फल ,सलाद ,हरी सब्जी ,कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले अनाज ,अंडा और मछली शामिल करें | 

ओमेगा -3 फैटी एसिड का सेवन करें 

ओमेगा -3 फैटी एसिड के सेवन से ट्राइग्लिसराइड का लेवल कम होता है | tg कम होने से  इन्सुलिन प्रतिरोध कम होता है | इसके लिए अखरोट ,अंडा और मछली खाएं | 

और पढ़ें : ओमेगा 3 फैटी एसिड के फायदे

ओमेगा 6 फैटी एसिड के फायदे

ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस कम करें 

शरीर में फ्री रेडिकल्स की संख्या कम करके ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस कम किया जाता है | इसके लिए एंटी ऑक्सीडेंट्स से भरपूर ड्राई फ्रूट्स ,फल ,कच्ची हरी सब्जी , हर्बल चाय का सेवन करें | 

पर्याप्त नींद लें 

समय पर सोना तथा समय पर जागना बहुत आवश्यक है | इससे तनाव कम होता है , नींद पूरी होती है ,शरीर में हार्मोन सही तरीके से श्रावित होता है | इससे इन्सुलिन रेसिस्टेन्स  कम करने में बहुत मदद मिलती है | 

डॉक्टर से संपर्क करें 

डॉक्टर को अपनी स्थिति बतायें और उनके द्वारा दिए गए दवाइयों का सेवन करें तथा साथ ही उचित जीवन शैली अपनायें | 

उम्मीद है आपको इस लेख से  Insulin Resistance क्या है तथा इससे सम्बंधित प्रश्नो का जवाब मिल गया होगा। 

मेथी के फायदे तथा नुकसान

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